दैवयोग
तथा शकुनि के छल कपट से कौरवों और पाण्डवों में वैर की आग प्रज्वलित हो उठी।
दुर्योधन बङी खोटी बुद्धि का मनुष्य् था। उसने शकुनि के कहने पर पाण्डवों को
बचपन में कई बार मारने का प्रयत्न किया। युवावस्था में आकर जब गुणो में उससे अधिक
श्रेष्ठ युधिष्ठर को युवराज बना दिया गया तो शकुनि ने लाक्ष के बने हुए धर में
पाण्डवों को रखकर आग लगाकर उन्हें जलाने का प्रयत्न किया किन्तु विदुर की
सहायता से पाँचों पाण्डव अपनी माता के साथ उस जलते हुए घर से बाहर निकल गये। अपने
उत्तम गुणों के कारण युधिष्ठिर हस्तिनापुर के प्रजातनों में अत्यन्त लोकप्रिय हो
गये। उनके गुणों तथा लोकप्रियता को देखते हुये भीष्म पितामह ने धृतराष्ट्र से
युधिष्ठिर के राज्याभिषेक कर देने के लिये कहा। दुर्योधन नहीं चाहता था कि
युधिष्ठिर राजा बने अत: उसने अपने पिता धृतराष्ट्र से कहा, “पिताजी यदि एक बार युधिष्ठिर को
राजसिंहासन प्राप्त हो गया तो यह राज्य सदा के लिये पाण्डवों के वंश का हो
जायेगा और हम कौरवों को उनका सेवक बन कर रहना पङेगा।”
इस पर धृतराष्ट्र
बोले, “वत्स् दुर्योधन युधिष्ठिर हमारे कुल के सन्तानों में सबसे बङा है
इसलिये इस राज्य पर उसी का अधिकार है। फिर भीष्म तथा प्रजाजन भी उसी को राजा
बनाना चाहते हैं। हम इस विषय में कुछ भी नहीं कर सकते।”
धृतराष्ट्र के
वचनों को सुन कर दुर्योधन ने कहा, “पिताजी मैंने इसका प्रबन्ध कर लिया है।
बस आप किसी तरह पाण्डवों को वारणावत भेज दें।”
दुर्योधन ने वारणावत
में पाण्डवों के निवास के लिये पुरोचन नामक शिल्पी से एक भवन का निर्माण करवाया था
जो कि लाख चर्बी, सुखी घास, मूंज, जैसे अत्यन्त ज्वलशील पदार्थो से बना था।
दुर्योधन ने पाण्डवों को उस भवन में जला डालने का षङयन्त्र रचा था। धृतराष्ट्र
के कहने पर युधिष्ठिर अपनी माता तथा भाइयों के साथ वारणावत जाने के लिये निकल पङे।
दुर्योधन
के षङयन्त्र के विषय में विदुर को पता चल गया।
अत: वे वारणावत जाते हुये पाण्डवों से मार्ग मे मिले
तथा उनसे बोले, “देखो, दुर्योधन ने तुम लोगों के
रहने के लिये वारणावत नगर में एक ज्वलनशील पदार्थो का एक भवन बनवाया है जो आग
लगते ही भङक उठेगा। इसलिये तुम लोग भवन के अन्दर से वन तक पहुँचने के लिये एक
सुरंग अवश्य बनवा लेना जिससे कि आग लगने पर तुम लोग अपनी रक्षा कर सको। मैं सुरंग
बनाने वाला कारीगर चुपके से तुम लोगों के पास भेज दूँगा। तुम लोग उस लाक्षागृह में
अत्यन्त सावधानी के साथ रहना” वारणावत में युधिष्ठिर ने अपने
चाचा विदुर के भेजे गये कारीगर की सहायता से गुप्त सुरंग बनवा लिया। पाण्डव नित्य
आखेट के लिये वन जाने के बहाने अपने छिपने के लिये स्थान की खोज करने लगे। कुछ
दिन इसी तरह बिताने के बाद एक दिन युधिष्ठिर ने भीमसेन से कहा, “भीम अब
दुष्ट पुरोचन को इसी लाक्षागृह में जलाकर हमें भाग निकलना चाहिये।” भीम ने
उसी रात्रि पुरोचन को सिकी बहाने बुलवाया और उसे भवन के एक कक्ष में बन्दी बना
दिया। उसके पश्चात् भवन में आग लगा दिया और अपनी माता कुन्ती एवं भाइयों के साथ
सुरंग के रास्ते वन में भाग निकले। लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार जब
हस्तिनापुर पहुँचा तो पाण्डवो को मरा समझ कर वहाँ की प्रजा अत्यन्त दु:खी हुई।
दुर्योधन और धृतराष्ट्र सहित सभी कौरवो ने भी शोक मनाने का दिखावा किया और अन्त
में उन्होंने पाण्डवों की अन्त्येष्टि करवा दी।
लाक्षाग्रह षडयंत्र
Reviewed by Kahaniduniya.com
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नवंबर 06, 2019
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