दुर्योधन की रक्षा



गन्‍धमादन पर्वत स्थित कुबेर के महल में चार वर्ष व्‍यतीत करने के पश्‍चात् पाण्‍डवगण ने वहाँ से प्रस्‍थान किया और मार्ग में अनेक वनों में रूकते-रूकते, स्‍थान-स्‍थान पर अपने शौर्य और पराक्रम से दुष्‍टों का दमन करते, ॠषियों और ब्राह्मणों के सत्‍संग का लाभ उठाते वे द्वैतवन पहुँचे और वहीं रहकर वनवास का शेष समय व्‍यतीत करने लगे। अब तक वनवास के ग्‍यारह वर्ष पूर्ण हो चुके थे। पाण्‍डवों के द्वैतवन में होने की सूचना दुर्योधन तथा उसकी दुष्‍ट मण्‍डली (दु:शासन, शकुनि, कर्ण आदि) को मिली वे एक बार फिर वहाँ जाकर पाण्‍डवों को मार डालने की योजना बनाने लगे। संयोगवंश उन दिनों कौरवों की गौ-सम्‍पत्ति द्वैतवन में ही थी। अपनी गौ-सम्‍पत्ति अंकेक्षण, निरीक्षण आदि करने के बहाने दुर्योधन ने धृतराष्‍ट्र से द्वैतवन जोने की अनुमति प्राप्‍त कर ली। इस प्रकार दुर्योधन और उसकी दुष्‍ट मण्‍डली ने अपनी एक विशाल सेना के साथ द्वैतवन में पहुँचकर वहाँ अपना डेरा डाल दिया। वे अपना राजसी ठाट-बाट का प्रदर्शन कर पाण्‍डवों को जलाना भी चाहते थे, इसलिये बहुमूल्‍य वस्‍त्राभूषणों से सुसज्जित राजमहिलाओं को भी उन्‍होंने अपने साथ रख लिया था। एक दिन वे जलविहार करने के उद्देश्‍य से दुर्योधन अपनी मण्‍डली तथा राज महिलाओं के साथ द्वैतवन में स्थित मनोरम सरोवर मे पहुँचे।



किन्‍तु उस सरोवर में गन्‍धर्वराज चित्ररथ पहले से ही आकर अपनी पत्नियों के साथ जलक्रीङा कर रहे थे। चित्ररथ के सेवकों ने दुर्योधन को सरोवर में उतरने से रोकते हुए कहा, इस समय गन्‍धर्वराज चित्ररथ अपनी पत्नियों के साथ इस सरोवर में जलक्रीङा कर रहे है, अत: उनके बाहर आने से पहले अन्‍य कोई भी सरोवर में नही उतर सकता।सेवकों के इन वचनों को सुन कर दुर्योधन ने क्रोधित होकर कहा, तू शायद जानता नहीं कि तू किससे बात कर रहा है। मैं हस्तिनापुर नरेश धृतराष्‍ट्र का महाबली पुत्र दुर्योधन हूँ। यह सरोवर हमारे राज्‍य की सीमा के अन्‍तर्गत आता है। तू जाकर चित्ररथ से कह दे कि इस राज्‍य का युवराज यहाँ जलविहार करने आया है और तुम्‍हें  इस सरोवर से बाहर निकलने की आज्ञा दी है।दुर्योधन के दर्पयुक्‍त सन्‍देश को सुन कर गन्‍धर्वराज चित्ररथ के क्रोध का पारावार न रहा और उसने दुर्योधन तथा उसकी मण्‍डली के साथ युद्ध आरम्‍भ कर दिया। दुर्योधन के साथी और सेना कुछ समय तक तो युद्ध करते रहे किन्‍तु चित्ररथ को अधिक बलवान पाकर वे सभी दुर्योधन एवं राजमहिलाओं को वहीं छोङकर भाग खङे हुये। चित्ररथ ने दुर्योधन और उन राजमहिलाओं को कैद कर लिया।


दुर्योधन के भगोङी सेना जब कुछ न सूझा तो वे वहाँ निवास करते हुये पाण्‍डवों के पास जाकर उनसे दुर्योधन और राजमहिलाओं की मुक्ति के लिये याचना करने लगे। उनकी याचना सुनकर भीमसेन ने प्रसन्‍न होकर युधिष्ठिर से कहा, बङे भैया दुर्योधन अपने राजसी वैभव का हमारे सामने प्रदर्शन करने यहाँ आया था। गन्‍धर्वो ने दुर्योधन की दुर्दशा करके हमारे हित का काम किया है। आप कदापि उसे मत छुङाना।इस पर युधिष्ठिर बोले, भैया भीम ये लोग हमारी शरण में आये हैं और शरण में आये लोगों की रक्षा करना क्षत्रियों का धर्म होता है। फिर दुष्‍ट स्‍वभाव का होने के बाद भी दुर्योधन आखिर हमारा भाई ही है। उसके साथ की राज महिलाएँ हमारे ही कुल की महिलाएँ हैं और उनका निरादर होने से हमारे ही कुल को कलंक लगेगा। इसलिये उचित यही है कि तुम और अर्जुन जाकर उनकी रक्षा करो।अपने बङे भाई की आज्ञा मानकर भीम और अर्जुन ने सरोवर के पास जाकर चित्ररथ को युद्ध के लिये ललकारा। उनकी ललकार सुनकर चित्ररथ क्रोधित होने के बजाय मुस्‍कुराते हुये अर्जुन के पास आये और बोले, पार्थ मैं तो तुम्‍हारा सखा ही हूँ। वास्‍तव में दुष्‍ट दुर्योधन अपनी सेना के साथ तुम लोगों का वध करने के लिये यहाँ आया था। देवराज इन्‍द्र को इस बात की सूचना मिल चुकी थी इसलिये उन्‍होंने मुझे यहाँ भेजा था। हे सखा नीति कहते है कि ऐसे दुष्‍टों को कभी क्षमा नहीं करना चाहिये, किन्‍तु अपने बङे भ्राता की आज्ञा मानकर यदि तुम दुर्योधन को छुङाना चाहते हो, तो लो मैं इसे तथा इसके साथ की राजमहिलाओं को अभी छोङ देता हूँ।इतना कहकर चित्ररथ ने दुर्योधन सहित समस्‍त कैदियों को मुक्‍त कर दिया। वे सभी वहाँ से धर्मराज युधिष्ठिर के पास आये। ग्‍लानि से भरे दुर्योधन ने युधिष्ठिर को प्रणाम किया और लज्‍जा से सिर झुकाये अपने नगर की ओर चल दिया। 
दुर्योधन की रक्षा  दुर्योधन की रक्षा Reviewed by Kahaniduniya.com on नवंबर 11, 2019 Rating: 5

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