विक्‍की रॉय



क्‍या हम सोच सकते है कि गरीबी के कारण 11 वर्ष की उम्र में घर से भागने वाला लङका जो दिल्‍ली जाकर रेलवे स्‍टेशन पर जाकर कचरा बीनने लगा वह एक अन्‍तराष्‍ट्रीय ख्‍याति प्राप्‍त फोटोग्राफर बन सकता है? पढिए हजारों लोगो के प्रेरणास्‍त्रोत 27 वर्षीय मशहूर फोटोग्राफर विक्‍की रॉय की गरीबी, संघर्ष और सफलता की कहानी।

11 वर्ष की उम्र में घर से भागना

पुरूलिया गांव (पश्चिम बंगाल) में बहुत ही गरीब परिवार में जन्‍मे विक्‍की रॉय (Vicky Roy) जब छोटे थे तो उनके माता-पिता ने गरीबी के कारण विक्‍की को उनके नाना-नानी के घर छोङ दिया था।

नाना नानी के घर में विक्‍की के साथ अत्‍याचार होता था। वहां पर विकी को दिन भर काम करना पङता और छोटी-छोटी बातों के लिए उनके साथ मार-पीट होती थी।

नाना-नानी के घर में विकी एक कैदी के समान हो गए थे जबकि विक्‍की को घुमने फिरने का शौक था।

इसलिए 1999 में मात्र 11 वर्ष की आयु में विक्‍की ने अपने मामा की जे से 900 रूपये चोरी किये और घर से भाग गए।



घर छोङने के बाद विक्‍की दिल्‍ली पहुँच गए। विक्‍की जब छोटे से गाँव से भागकर दिल्‍ली रेलवे स्‍टेशन पहुँचे तो शहर की भीङभाङ देखकर वे घबरा गए और रोने लगे।

तभी उनकी मुलाकात रेलवे स्‍टेशन पर रहने वाले कुछ लङकों से हुयी जो वहां पर कचरा बीनने का काम करते थे। विक्‍की दिन भर उन लङकों के साथ रहते और रेलवे स्‍टेशन से खाली बोतलें बीनकर, उसमें पानी भर कर रेल के जनरल डब्‍बों में बेचते।

रात को वे रेलवे स्‍टेशन पर सोते थे लेकिन रात में जब पुलिस वाले मुआइना करने के लिए आते तो डंडा मारकर भगा देते थे।

कुछ दिनों बाद कुछ व्‍यक्ति, विक्‍की को अनाथालय में रहने लगे और वहां पर उन्‍हें अच्‍छा खाना-पीना मिल जाता था।

लेकिन शेल्‍टर होम पर हमेशा ताला लगा रहता था और कोई भी वहां से बाहर नहीं जा सकता था। विक्‍की फिर से एक कैदी की तरह हो गए थे, इसलिए उन्‍होंने अनाथालय से भागने का फैसला किया।

एक दिन मौका देखकर वह अनाथालय से भाग गए और फिर से रेलवे स्‍टेशन जाकर वही कचरा बीनने का काम करने लगे।

लेकिन पैसों की कमी के कारण कुछ महीनों बाद वह अजमेरी गेट के किसी सङक किनारे बने रेस्‍तरां में, बर्तन धोने का काम करने लगे।

यह समय विक्‍की के लिए सबसे मुश्किल समय था। कङाके की  ठण्‍ड में विक्‍की को सुबह पांच बजे उठा दिया जाता और रात को 12 बजे तक ठन्‍डे पानी से बर्तन धोते।

विक्‍की के लिए जीवन बदलते पल

एक बार उसी रेस्‍तरां में एक सज्‍जन व्‍यक्ति खाना खाने आये। उन्‍होंने जब विक्‍की को काम करते देखा, तो उन्‍होंने कहा कि तुम्‍हारी पढने-लिखने की उम्र है, पैसे कमाने की नहीं और वे विक्‍की को सलाम बालक ट्रस्‍ट नाम संस्‍था में ले आए। सलाम बालक ट्रस्‍ट की अपना घर संस्‍था में विक्‍की रहने लग गए।

2000 में, उनका दाखिला 6वीं क्‍लास में करा दिया गया और वे निरंतर रूप से स्‍कूल जाने लगे। लेकिन 10वीं क्‍लास में उनके, मात्र 48%  ही आये, इस कारण उन्‍होंने कुछ और करने का निर्णय्‍ लिया।

एक फोटोग्राफर के रूप में शुरूआत

2004 में विक्‍की ने अपने टीचर को फोटोग्राफी क्षेत्र में अपनी रूचि के बारे में बताया।

उसी समय ट्रस्‍ट के अन्‍दर ही एक फोटोग्राफी वर्कशॉप का आयोजन हो रहा था, जिसके लिए ब्रिटिश फोटोग्राफर डिक्‍सी बेंजामिन आये हुए थे।

तो टीचर ने डिक्‍सी बेंजामिन से विक्‍की का परिचय करवाया और कहा कि यह एक फोटोग्राफर बनना चाहता है।

डिक्‍सी ने विक्‍की को थोङी-बहुत फोटोग्राफी सिखाई, लेकिन विक्‍की को उनके साथ काम करने में परेशानी हुई, क्‍योंकि विक्‍की को इंग्लिश नहीं आती थी।
कुछ समय बाद डिक्‍सी वापस विदेश लौट गए। इसके बाद विक्‍की को दिल्‍ली के क फोटोग्राफर, एनी मान से सीखने का मौका मिला।

एनी उन्‍हें 3000 रूपये, तनख्‍वाह के रूप में और मोबाइल और बाइक के लिए पैसे देते थे।

18 साल की उम्र तक तो विक्‍की सलाम बालक ट्रस्‍ट में रहें, लेकिन इसके बाद उन्‍हें किराये पर मकान लेकर रहना पङा। इसी समय उन्‍होंने सलाम बालक ट्रस्‍ट से, B/W Nikon camera खरीदने के लिए लोन लिया।

इसके लिए उन्‍हें हर महीने, 500 रूपये किस्‍त के रूप में और 2,500 मकान किराया भी देना होता था। इस कारण विक्‍की को बङे-बङे होटलों में वेटर का काम करना पङता था, जिससे उन्‍होंने रोजाना 250 रूपये मिल जाते थे।

रैग-पीकर फोटोग्राफर

2007 में जब विक्‍की 20 वर्ष के हो गए तो उन्‍होंने अपनी फोटोग्राफी की पहली प्रदर्शनी लगाई। इसका नाम था ‘Street Dreams’ और उन्‍होंने यह प्रदर्शनी India Habitat Centre में लगाई।   

इससे उन्‍हें बहुत ख्‍याति मिली। इसके बाद में वे लंदन, वियतनाम और दक्षिण अफ्रीका भी गए। 2008 में विक्‍की तीन अन्‍य फोटोग्राफर के साथ राम चंद्र नाथ फाउंडेशन द्वारा नामित, मायबच फाउंडेशन के लिए फोटोग्राफी करने न्‍यूयॉर्क भी गए।

2009 की शुरूआत में छह महीने के लिए विक्‍की ने वर्ल्‍ड ट्रेड सेंटर के पुननिर्माण की फोटोग्राफी का अध्‍ययन किया। वापस भारत आने के बाद, विक्‍की को सलाम बाल ट्रस्‍ट ने International Award for Young people सम्‍मानित किया।

सफलता और पुरस्‍कार

इसके बाद विक्‍की को और भी कई सम्‍मान से नवाजा गया। 2010 में, विक्‍की को Bahrain Indian ladies association ने young achiever from india से भी सम्‍मानित किया।

2011 में विक्‍की और उनके दोस्‍त Chandan Gomes ने फोटोग्राफी लाइब्रेरी बनाई और कर्ठ अन्‍य प्रसिद्ध फोटोग्राफर से भी इससे जुङने आग्रह किया, ताकि जो लोग पैसों की तंगी की वजह से फोटोग्राफी सम्‍बंधित किताबें खरीद नहीं पाते, उनकी सहायता की जा सकें।

अब इस लाइब्रेरी में 500 किताबें है और विक्‍की समय-समय पर वर्कशॉप भी करवाते हैं। 2013 में विक्‍की का चयन आठ अन्‍य फोटोग्राफर के साथ Nat Geo Mission के Cover shoot लिए हुआ और वो श्रीलंका गए।

इसी साल उन्‍होंने अपनी पहली किताब ‘Home Street Home’ लिखी, जिसे Nazar Foundation ने प्रकाशित किया। इसका दूसरा भाग, 2013 में ही दिल्‍ली फोटो फेस्‍टीवल में प्रकाशित हुआ। इन्‍हें 2014 में, Boston MIT और Ink Talk में एक महीनें के लिए fellowship भी मिली। कई सालों के बाद विक्‍की अपने भाई-बहनों से भी मिलें। अब वह अपने परिवार की देखरेख भी करते हैं। अब वह freelance photographer के रूप में काम करते हैं।  

‘सफलता के लिए कोई शॉर्टकट नहीं’

विक्‍की बताते हैं: अगर आप अपने जीवन में कुछ करना चाहते हैं तो आपको हमेशा कङी मेहनत करनी होगी, सफल होने के लिए कोई भी शोर्टकट नहीं होता।

अगर आप अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं तो उसी पर अपनी नजर रखें। बाधाओं से डर कर भागने से, आप कभी सफल नहीं हो पाएंगे।
विक्‍की रॉय विक्‍की रॉय Reviewed by Kahaniduniya.com on नवंबर 03, 2019 Rating: 5

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