बुँदी का किला


बस, बूँदी के किले को जब तक धूल में नहीं मिला दूंगा, तब तक मेरे लिए अन्‍न-जल ग्रहण करना हराम है। चित्तौङ के महाराजा राणाप्रताप ने ऐसी भीषण प्रतिज्ञा एक दिन भरे दरबार में घोषित कर दी।
प्रधानमंत्री ने समझाया-महाराज, ऐसी कठिन प्रतिज्ञा आपने किस तरह कर ली? बूँदी के किले का विनाश क्‍या आप सरल समझते हैं?
राणा-प्रतिज्ञा कापालन क्‍या मुश्किल है? और यह भी तुम जानते ही हो कि राजपूत का वचन प्राण रहते कभी झूठा नहीं हा सकता।राणा को घङी-भर के लिए वीरता का जोश उमङ आया था और उसके ही असर से वह प्रतिज्ञा कर बैठे थे। लेकिन बाद में भूख-प्‍यास से उनके होश ठिकाने आ गये। राणा ने कहा, मंत्रीजी, बूँदी का किला यहाँ से कितनी दूर और है?
महाराज, सिर्फ बारह कोस।
उस किले के इस समय रक्षक कौन हैं?
शूरवीर हाङा राजपूत।

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हाङा!-कहते ही महाराज का मुँह खुला रह गया।
हाँ महाराज, चित्तौङ के राणा को अभी उसका अनुमान नहीं। राजन्, आप जानते ही हैं, खाई खिसक सकती है, लेकिन हाङा नहीं खिसक सकता।
तो अब क्‍या किया जाये?-राणाजी को फिक्र सताने लगी। इसी बीच मंत्रीजी के मस्तिष्‍क में एक तरकीब सूझ आयी-महाराज, हमको तो बस इतना की करना है कि किसी तरह से शपथ पूरी हो जाये। मैं रात-ही-रात में श्रमिक लगाकर अपने शहर से बाहर बूंदी का नकली किला खङा करवा देता हूँ। बाद में आप आकर उसे धराशाही कर सकते हैं, इस तरह आपकी प्रतिज्ञा भी पूरी हो जायेगी।
छाती ठोककर राणाजी ने कहा, शाबाश, ठीक है।रात-भर कार्य चला रहा। सुबह होते-होते बूँदी का किला तैयार हो गया। राणा सेना लेकर किला जीतने के लिए चल पङे। लेकिन राणाजी की सेना में एक हाङा राजपूत नौकरी कर रहा था। उसका नाम था कुंभा। वन में शिकार करके वह उनके पीछे चला आ रहा था। कंधे पर धनुष-बाण लटक रहे थे। किसी ने उसे बता दिया था कि बूँदी का यह नकली किला बनाकर राणा उसे तोङने के लिए जा रहे हैं। हाङा भृकुटि चढाकर भङक उठा, क्‍या मेरे जीते-जी राणा बूँदी का यह नकली किला तोङ सकेगा? हाङा की कीर्ति को कलंक लगेगा।
लेकिन भार्इ, यह तो नकली किला है।
इससे क्‍या? बूँदी के किले के नाम पर क्‍या इस तरह का खेल खेला जा सकता है?
इतने में राणा सेना लेकर वहाँ आ पहुँचे। कुंभा भी इस नकली दुर्ग के द्वार पर जाकर खङा हो गया। धनुष पर बाण चढा लिया। दूर से ही राणा को आता हुआ देखकर हाङा गरज उठा, सावधान राणा, उसी जगह प खङे रहिए। हाङा के रहते हुए बुँदी के किले के नाम पर खेल नहीं खेला जा सकता। उससे पहले तो तुमको हाङा की भुजाओं से खेलना पङेगा।
ऱाणा ने अपनी सारी सेना कुंभा पर छोङ दी। जमीन पर घुटना टेककर कुंभा ने धनुष पर बाण चढाया। धनुष से बाण छुटने लगे। और एक-के-बाद-एक सैनिक गिरने लगे। कुंभा गोल चक्‍कर लगाता हुआ युद्ध कर रहा था। पूरी सेना उस पर टूट पङी। आखिर में कुंभा रण में विफल रहा। नकली किले के मुख्‍य द्वार के भीतर उसके प्राण रहते कोई नहीं घुस सका। उसके खून से नकली बूँदीगढ भी पावन हो गया। 
बुँदी का किला बुँदी का किला Reviewed by Kahaniduniya.com on अक्टूबर 06, 2019 Rating: 5

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