अंधेरे से लङने की प्रेरणा है दिवाली


लक्ष्‍मी की आराधना होनी चाहिए कि लक्ष्‍मी का संबंध धन से नही वरन चरित्र और धन की पवित्रता से है। लक्ष्‍मी अशुद्ध, अपवित्र और अप्राकृतिक से कभी नहीं जुङती है। जिसका आस्‍वादन-भोजन अशुद्ध है, जिसकी भाषा-वाणी अपवित्र है, जिसका संस्‍कार-विहार अप्राकृतिक है, वह लक्ष्‍मी का आशीर्वाद कैसे प्राप्‍त कर सकता है। सच्‍ची औश्र स्‍थायी लक्ष्‍मी वही है जो शील औश्र मर्याछा से पाई जाए।
    कोई नहीं जानता कि दीपावली कब से मनाई जा रही है। यह सनातन है, उसी तरह जैसे सनातन धर्म है। किसने पहली बार मिट्टी से बने दीप में रूई औश्र तेल का संयोग कर उन्‍हें अग्नि से मिलाया होगा और उसे दीपावली की रात लक्ष्‍मी पूजा से जोङा होगा। यह प्रयोग आज भी इतना अनूठा है कि उसने पूर भारतीय समाज को एकता में बांध रखा है।



दीपावली ही यक्षरात्रि


कार्तिक की अमावस्‍या को जब दीपावली मनाई जाती है, वात्‍स्‍यायन के समय में यक्ष-रात्रि उत्‍सव मनाया जाता है। दीपावली उत्‍सव का पुराणों, धर्मसूत्रों, कल्‍पसूत्रों में विस्‍तृत रूप से पाया जाता है। यक्ष-रात्रि से यही अनुमान लगाया जाता है कि उस समय इस दिन यक्ष पूजा होती थी। दूसरी व्‍याख्‍या से लक्ष्‍मी पूजा की रात्रि अर्थ भी निष्‍पन्‍न हो जाता है। प्राचीन काल में शायद दिपावली उत्‍सव शास्‍त्रीय या धार्मिक विधि रूप मे नहीं मनाया जाता रहा है क्‍योंकि वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों में दीपावली का कोई उल्‍लेख नही है। पद्मपुराण, स्‍कंदपुराण और मनुस्‍मृति में दीपावली का विस्‍तृत वर्णन है। उसी के आधार पर दीपावली उत्‍सव का प्रचलन अब तक है।

दीपावली है अमर उत्‍सव

दीपावली के दिन और रात, दोनों सुंदर हैं। पर वह शोभा रात में पाती है, जब नन्‍हें-नन्‍हें दीप उतरते हैं। इन दीपों की चमकती स्‍वर्ण आभा-सी लौ अंधेरे को चीरकर प्रकाश की विजय पताका फहराती है। इस नाते परंपरा का अलौकिक बोध ‘तमसो का ज्‍योतिर्गमय’ यानी अंधेरे से लङने की प्रेरणा है। अंधेरा अज्ञान है, जो ज्ञानरूपी प्रकाश से हार जाता है।

 दीप है असाधारण


जगमगाते दीप देवोपम भूमिका निभाते हैं। देहरी पर धरा दीप भीतर और बाहर, दोनों ओर उजियारा करता है। गोस्‍वामी तुलसीदास भगवान श्रीराम के नाम को ‘मणि दीप’ कहते हैं, जिसे जपने से अंदर और बारह, दोनों ओर उजाला होता है। शास्‍त्र दीप को निर्जीव नहीं, वरन देवता मानते हैं – भो दीप देवरूपस्‍त्‍वम....। दीप के देवता में परिवर्तित हो जाने का एक सुंदर इतिहास है। धार्मिक विधि में दीप का साक्ष्‍य होना जरूरी है। उससे आरती और अनुष्‍ठान पूर होते हैं।

दीप का प्रकाश पर्व


दीपावली का त्‍योहार भारतीय मनोभूमि से गहरा जुङा है, क्‍योंकि रोशनी से भारत का पुराना रिश्‍ता है। इसी रिश्‍ते ने दीपों की माला के त्‍योहार का सृजन किया। इस दीपमाला की शोभा अलौकिक है।

पादुका प्रशासन से मुक्ति


जनश्रुति है कि दीपावली के दिन भगवान श्रीराम 14 वर्षो का वनवास पूरा कर अयोध्‍या लौटे थे। श्रीराम के लौटते ही दीपावली अयोध्‍या में पादुका-प्रशासन का मुक्ति पर्व बनी। अयोध्‍यावासियों ने माना कि पादुका-प्रशासन के दिन लद गए। असली राजा राम और रानी सीता वनवास पुरा कर अयोध्‍या लौट आए हैं। पादुकाओं की जगह अब श्रीराम राजा होंगे। तभी से राम राज्‍य की शुरूआत के प्रतीक के रूप में दीपावली पर दीप जलाए जा रहे हैं।

महात्‍मा गांधी की दीपावली

महात्‍मा गांधी ने 11 सितंबर, 1921 को ‘नवजीवन’ में लिखा –‘यदि दीपावली पर हमें स्‍वराज्‍य न मिल सके तो हमें क्‍य करना चाहिए? बस मातम मनाना चाहिए। न बढिया खाने बनाए जाएं, नदातें दी जाएं, न नाच-गान किया जाए। बस संयम के साथ रहकर ईश्‍वर की प्रार्थना की जाए।

    बहुत संभावना है कि गांधी होते तो दीपावली वर उपवास रखते और उनकी प्रार्थना-सभा में उस गरीब के लिए प्रार्थना होती जिसके घर में आज दीप जलाने के लिए रूई और तेल नहीं है। दीपावली हमें प्रेरणा देती है कि अंधेरे में दीप जले और चारों ओर उजाला फैल सके। 
अंधेरे से लङने की प्रेरणा है दिवाली  अंधेरे से लङने की प्रेरणा है दिवाली Reviewed by Kahaniduniya.com on अक्टूबर 23, 2019 Rating: 5

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