हनुमानजीको
बालाजी के नाम से भी जाना जाता है। बालाजी के नाम से भरत में दो मंदिर ही प्रसिद्ध
हैं, एक है आंध्र प्रदेश में स्थित तिरूपति बालाजी का मंदिर और दूसरा हमारे राज्य
राजस्थान का सालासर बालाजी का मंदिर। आज मैं सालासर बालाजी की महिला का बखान
करूंगा। शूरू करने से पहले चलिए बोले मेरे साथ “सालासर
बालाजी की जय।”
सालासर हनुमान धाम
राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है। यह जयपुर-बीकानेर राजमार्ग पर सीकर से लगभग
57 किमी. व सूजानगढ से लगभग 24 किमीँ. दुर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए जयपुर व
अन्य स्थानों से पर्याप्त परिवहन साधन उपलब्ध हैं। किराए की टैक्सी सेवा भी
उपलब्ध है। इस धाम के बारे में यह प्रसिद्ध है कि यहां से कोई भी भक्त खाली हाथ
नहीं लौटता। सालासर बालाजी सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
सालासर में वर्ष भर
श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंगल, शनि और प्रत्येक पूर्णिमा को दर्शनार्थी
विशेष रूप से आते हैं। यहां प्रति वर्ष तीन बङे मैले लगते हैं। प्रथम चैत्र शुक्ल
पूर्णिमा को श्री हनुमान जयंती के अवसर पर, द्वितीय आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को और
अंतिम भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को।
इन मैलों में लाखों
श्रद्धालु आते हैं। इस अवसर पर छोटा-सा सालासर ग्राम महाकुभ से कम नहीं लगता।
सालासर बालाजी मंदिर का इतिहास
यह घटना सन 1754 की
है। सीकर के रूल्याणी ग्राम के निवासी लच्छीरामजी पाटोदिया के सबसे छोटे पुत्र
मोहनदास बचपन से ही संत प्रवृत्ति के थे। सत्संग और पूजा अर्चना में शुरू से ही
उनका मन रमता था।
उनके जन्म के समय
ही ज्यातिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि आगे चलकर यह बालक तेजस्वी संत बनेगा और
दुनिया में इसका नाम होगा।
मोहनदास की बहन कान्ही
का विवाह सालासर ग्राम में हुआ था। एकमात्र पुत्र उदय के जन्म के कुछ समय पश्चात
ही वह विधवा हो गई। मोहनदास जी अपनी बहन और भांजे को सहारा देने की गरज से सालासर
आकर साथ रहने लगे। उनकी मेहनत से कान्ही के खेत सोना उगलने लगे। अभाव के बादल छंट
गए और उनके घर हर याचक को आश्रम मिलने लगा। भांजा उदय भी बङा हो गया था उसका विवाह
कर दिया गया।
तत्कालीन सालासर
बीकानेर राज्य् के अधीन था। उन दिनों ग्रार्मो का शासन ठाकुरों के हाथ में था।
सालासर व उसके निकटवर्ती अनेक ग्रार्मो की देख-रेख का जिम्मा शोभासर के ठाकुर
धीरज सिंह के पास था।
एक दिन उन्हें खबर
मिली कि डाकुओं का एक विशाल जत्था लूट-पाट के लिए उस और बढा चला आ रहा है। उनके
पास इतना भी वक्त नहीं था कि बीकानेर से सैन्य सहायता मंगवा सकते।
अतंत: सालासर के
ठाकुर सालम सिंह की सलाह पर दोनों बाबा मोहनदास की शरण में पहुंचे और मदद की गुहार
लगाई। बाबा ने उन्हें आश्वस्त किया और कहा कि बालाजी का नाम लेकर डाकुओं की
पताका को उङा देना क्योंकि विजय पताका ही किसी भी सेना की शक्ति होती है। ठाकुरों
ने वैसा ही किया। बालाजी का नाम लिया और डाकुओं की पताका को तलवार से उङा दिया।
डाकू सरदार उनके चरणों में आ गिरा, इस तरह मोहनदास जी के प्रति दोनों की श्रद्धा
बलवती होती चली गई।
बाबा मोहनदास ने उसी
पल वहां बालाजी का एक भ्व्य मंदिर बनवाने का संकल्प किया। सालम सिंह ने भी
मंदिर निमार्ण में पूर्ण सहयोग देने का निश्चय किया और आसोटा निवासी अपने ससुर
चंपावत को बालाजी की मूर्ति भेजने का संदेश प्रेषित करवाया। इधर, आसोटा ग्राम में
एक किसान ब्रह्ममुहूर्त में अपना खेत जोत रहा था। एकाएक हल का निचला हिस्सा किसी
वस्तु से टकराया उसे अनुभव हुआ तो उसने खोदकर देखा तो वहां एक मूर्ति निकली। उसने
मूर्ति को निकाल कर एक ओर रख दिया और प्रमादवश उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
चमत्कार
वह पुन: अपने काम
में जुट गया। एकाएक उसके पेट में तीव्र दर्द उठा और वहां छटपटाने लगा। उसकी पत्नी
दौङी-दौङी आई किसान ने दर्द से कराहते हुए प्रस्तर प्रतिमा निकालने और पेट में
तीव्र दर्द होने की बात बताई। कृषक पत्नी बुद्धिमती थी। वह प्रतिमा के निकट पहुची
और आदरपूर्वक अपने आंचल से उसकी मिट्टी साफ की तो वहां राम-लक्ष्मण को कधे पर लिए
वीर हनुमान की दिव्य झांकी के दर्शन हुए। काले पत्थर की उस प्रतिमा को उसने एक
पेङ के निकट स्थापित किया और यथाशक्ति प्रसाद चढाकर, अपराध क्षमा की प्रार्थना की
तभी मानो चमत्कार हुआ वह किसान स्वस्थ हो उठ खङा हुआ।
इस चमत्कार की खबर
आग की तरह सारे गांव में फैल गई। आसोटा के ठाकुर चंपावत भी दर्शन को आए और उस
मूर्ति केा अपनी हवेली में ले गए। उसी रात ठाकुर को बालाजी ने स्वप्न में दर्शन
दिए और मूर्ति को सालासर पहुंचाने की आज्ञा दी।
प्रात: ठाकुर सालम
सिंह वह अनेक ग्रामवासियों ने बाबा मोहनदास जी के साथ मूर्ति का स्वागत किया और
सन 1754 में शुक्ल नवमी को शनिवार के दिन पूर्ण विधि-विधान से हनुमान जी की
मूर्ति की स्थापना की गई। बालाजी का पूर्व दर्शित रूप जिसमें वह श्रीराम और लक्ष्मण
को कंधे पर धारण किए थे, अदृश्य हो गया। उसके सथान पर दाढी-मूंछ, मस्तक पर तिलक,
विकट भौंहें, सुंदर आंखें, पर्वत पर गदा धारण किए अदभुत रूप के दर्शन होने लगे।
वर्तमान में मंदिर के द्वार व दीवारें चांदी विनिर्मित मूर्तियों और चित्रों से
सुसज्जित हैं। गर्भगृह के मुख्यद्वार पर श्रीराम दरबार की मूर्ति के नीचे पांच
मूर्तिया हैं, मध्य में भक्त मोहनदास बैठे हैं, दाएं श्रीराम व हनुमान तथा बाएं
बहन कान्ही ओर पं सुखरामजी बहनोई आशीर्वाद देते दिखाए गए हैं।
पंडित पन्ना लाल नाम के एक व्यक्ति जो देवी अंजनी के भक्त थे उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी अंजनी ने यह आशीर्वाद दिया कि उनकी तपस्या स्थली पर वह निवास करेंगी। इसके बाद सीकर नरेश कल्याणसिंह ने माता की प्रेरणा से यहां माता की मूर्ति स्थापित करवायी।
मार्ग मानचित्र (दिल्ली – सालासर बालाजी)
1. दिल्ली से :- नयी दिल्ली – गुरूग्राम (गुङगाँव) – रेवाङी –
नारनौल – चिङावा – झुंझुंनूं – मुकुंदगढ – लक्ष्मणगढ – सालासर बालाजी (318 किमी.)
(आपको रेवाङी – रोङ से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 को छोङकर रेवाङी से
झुंझुंनूं जाने वाला रास्ता लेना होगा) सबसे छोटा रास्ता)
2. नयी दिल्ली – गुरूग्राम –
बहरोङ – नारनौल – चिङावा – झुंझुंनूं – मुकुंदगढ – लक्ष्मणगढ – सालासर बालाजी
(335 किमी.)
(ऊपर बताये गये रास्ते से यह मार्ग बेहतर है, आपको बहरोङ से राष्ट्रीय
राजमार्ग-8 छोङना होगा, लेकिन बहरोङ – चिङावा – झुंझुंनूं वाला रास्ता बहुत खराब
है)
3. नयी दिल्ली – गुरूग्राम –
बहरोङ – कोटपुतली – नीमकाथाना – उदयपुरवाटी – सीकर – सालासर बालाजी (335 किलोमीटर)
आपको कोटपूतली से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोङना होगा)
4. नयी दिल्ली – गुरूग्राम –
बहरोङ – कोटपूतली – शाहपुरा – अजीतगढ – सामोद – चोमूँ – सीकर – सालासर बालाजी (392
किमी.) (आपको शाहपुरा से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोङना होगा) इसे सामोद मार्ग के
रूप में भी जाना जाता है।
5. नयी दिल्ली – गुरूग्राम –
बहरोङ – कोटपुतली – शाहपुरा – चंदवाजी – चोमूँ – सीकर – सालासर बालाजी (399 किमी.)
(आपको शाहपुरा से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोङना होगा) इसे चंदवाजी मार्ग भी कहा
जाता है। हालांकि यह मार्ग लम्बा है, इसकी लम्बाई लगभग 225 किलोमीटर है, परन्तु
राष्ट्रीय राजमार्ग-8 एक्सप्रेसवे पर गाङी चलाकर आराम से जा सकते है।
6. नयी दिल्ली – बहादुरगढ – झ्ज्झर – चरखीदादरी – लोहारू – चिङावा –
झुंझुंनूं – मुकुंदगढ – लक्ष्मणगढ – सालासर बालाजी (302 किमी.) यह नया रास्ता है
जिसे कम भक्त जानते हैं।
7. नयी दिल्ली – रोहतक – हिसार
– राजगढ – चूरू – फतेहपुर – सालासर बालाजी (382 किमी.)
प्रबंधन (सालासर बालाजी का ट्रस्ट)
सालासर बालाजी का प्रबंधन मोहनदासजी सालासर बालाजी ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है। मंदिर का सम्पर्क विवरण सालासर बालाजी ट्रस्ट सालासर, राजस्थानदर्शनीय स्थल
मोहनदास जी की
धुनिया वह जगह है, जहाँ महान भगवान हनुमान के भक्त मोहनदास जी के द्वारा पवित्र
अग्नि जलायी गयी, जो आज भी जल रही है। हिन्दू श्रद्धालू और तीर्थयात्री यहाँ से
पवित्र राख ले जाते है। श्री मोहन मंदिर, बालाजी मंदिर के बहुत ही पास स्थित है,
यह इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि मोहनदास जी और कनिदादी के पैरों के निशान यहाँ आज
भी मौजुद है। इस स्थान को इन दोनों पवित्र भक्तों का समाधि स्थल माना जाता है।
पिछले आठ सालों से यहाँ निरंतर रामायण का पाठ किया जा रहा है। भगवान बालाजी का
मंदिर परिसर में, पिछले 20 सालों से लगातार अखण्ड हरी किर्तन या राम के नाम का
निरंतर जाप किया जा रहा है। अंजनी माता का मंदिर लक्ष्मणगढ की ओर सालासर धाम से दो
किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अंजनी माता भगवान हनुमान या बालाजी की माँ यहाँ से
लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर रेगिस्तान में एक अद्वितीय पहाङ्री पर स्थित है,
माना जाता है कि यह 1100 साल पुराना मंदिर है, यह भी दर्शन के योग्य है।
श्री हनुमान जयन्ती
का उत्सव हर साल चैत्र शुक्ल चतुर्दशी और पूर्णिमा को मनाया जाता है। श्री
हनुमान जयन्ती के इस अवसर पर भारत के हर कोने से लाखों श्रद्धालु यहाँ पहुँचते
हैं। आश्विन शुक्लपक्ष चतुर्दशी और पूर्णिमा को मेलों का आयोजन किया जाता है और
बङी संख्या में भक्त इन मेलों में भी पहुँचते हैं। भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्दशी
और पूर्णिमा पर आयोजित किये जाने वाले मेले भी बाकी मेलों की तरह आकर्षण होते हैं।
इन अवसरों पर नि:शुल्क भोजन, मिठाईयों और पेय पदार्थो का वितरण किया जाता है।
सालासर बालाजी मंदिर
का रखरखाव मोहनदास जी ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है। सालासर ट्रस्ट सालासर कस्बे
के लिए काफी सूविधाएँ उपलब्ध कराती है, जैसे मंदिर के जेनरेटर से कस्बे में
बिजली उपलब्ध करायी जाती हैं, फिल्टर हुआ साफ पानी कस्बे के लोगों के लिए उपलब्ध
कराया जाता है।
इस तरह प्रकट हुए सालासत में दाढी मूंछों वाले बालाजी करते हैं चमत्कार
राजस्थान के चूरू
जिले में हनुमान जी का एक प्रसिद्ध मंदिर है जो सालासर बालाजी के नाम से जाने जाते
हैं। बालाजी के प्रकट होने की कथा जितनी ही चमत्कारी है उतने ही बालाजी भी चमत्कारी
और भक्तों की मनोकामना पूरी करने वाले हैं। तो आइये जानें सालासर बालाजी की कुछ
चमत्कारी कथा।
बालाजी के एक भक्त
थे मोहनदास जी इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर बालाजी ने इन्हे मूर्ति रूप में प्रकट
होने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए बालाजी नागौर जिले के आसोटा गांव
में 1811 में प्रकट हुए। इसकी भी एक रोचक कथा है।
आसोटा में एक जाट
खेत जोत रहा था तभी उसके हल की नोक किसी कठोर चीज से टकराई से निकाल कर देखा तो एक
पत्थर था। जाट ने अपने अंगोछे से पत्थर को पोंछकर साफ किया तो उस पर बालाजी की
छविं नजर आने लगी। इतने में जाट की पत्नी खाना लेकर आई। उसने बालाजी के मूर्ति को
बाजरे के चूरमे का पहला भोग लगाया। यही कारण है कि बालाजी को चूरमे का भोग लगता
है।
यह है मोहनदास जी की
समाधि स्थल। कहते हैं जिस दिन यह मूर्ति प्रकट हुई उस रात बालाजी ने सपने में
आसोटा के ठाकुर को अपनी मूर्ति सालासर ले जाने के लिए कहा। दूसरी तरफ मोहनदास जी
को सपने में बताया कि जिस बैलगाङी से मूर्ति सालासर पहुंचेगी उसे सालासर पहुंचने
पर कोई नहीं चलाए। जहां बैलगाङी खुद रूक जाए वहीं मेरी मूर्ति स्थापित कर देना।
सपने में मिले निर्देश के अनुसार ही मूर्ति को वर्तमान स्थान पर स्थापित किया
गया है।
पूरे भारत में एम
मात्र सालासर में दाढी मूछों वाले बालाजी स्थित हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि
मोहनदास जी को पहली बार बालाजी ने दाढी मूंछो के साथ दर्शन दिए थे। मोहनदास जी ने
इसी रूप में बालाजी को प्रकट होने के लिए कहा था। इसलिए हनुमान जी यहां दाढी मूछों
में स्थित हैं।
बालाजी के बारे में
एक बङी रोचक बात यह है कि इनके मंदिर का निर्माण करने वाले मुसलमान कारीगर थे।
इनमें नूर मोहम्मद और दाऊ का नाम शामिल है।
बालाजी की धुणी को
भी चमत्कारी माना जाता है। कहते हैं बाबा मोहनदास जी ने 300 साल पहले इस धुनी को
जलाई थी जो आज भी अखंडित प्रज्जवलित है।
सालासर में बालाजी
के आने के काफी सालों बाद यहां माता अंजनी का आगमन हुआ। कहते हैं कि बालाजी के
अनुरोध पर माता अंजनी सालासर आई। लेकिन उन्होंने कहा कि वह साथ में नहीं रहेंगे
इससे पहले किसकी पूजा होगी यह समस्या हो सकती है। इसलिए बालाजी की माता का मंदिर
बालाजी मंदिर से कुछ दुरी पर स्थित है। इस मंदिर में अंजनी माता की गोद में बालाजी
बैठे है। इस मूर्ति के आगमन की कथा भी बङी रोचक है।
अंजनी माता का मंदिर
क्यां बना इसके पीछे एक कथा यह कही जाती है कि ब्रह्मचारी हनुमान जी ने अपनी माता
से कहा कि वह स्त्री व संतान संबंधी समस्याओं एवं यौन रोग की परेशानी लेकर आने
वाले भक्तों की चिंता दूर करने “कठिनाई महसूस करते है। इसलिए आप यहां वास करें और भक्तों की इस
पेरशानियों को दूर करें।
पंडित पन्ना लाल नाम के एक व्यक्ति जो देवी अंजनी के भक्त थे उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवी अंजनी ने यह आशीर्वाद दिया कि उनकी तपस्या स्थली पर वह निवास करेंगी। इसके बाद सीकर नरेश कल्याणसिंह ने माता की प्रेरणा से यहां माता की मूर्ति स्थापित करवायी।
सालासर बालाजी मंदिर की इतनी मान्यता
Reviewed by Kahaniduniya.com
on
अक्टूबर 07, 2019
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