शिवाजी


काफी समय पहले की बात है, सतारा के महल में बैठे हुए शिवाजी महाराज एक दिन सुबह क्‍या देखते हैं कि उनके गुरू समर्थ रामदास जी शहर में घर-घर जाकर भिक्षा के लिए भटक रहे हैं।
    शिवाजी दिल-ही-दिल में सोचने लगे, गुरूजी ेक हाथ में भीख की झोली? जिसे किसी वस्‍तु की कमी नहीं हे, महाराज शिवाजी जिसके चरणों में प्रार्थना करता है, लोग जिसकी गोद में सारी धन-दौलत धरने को तैयार रहते हैं, ऐसे इस साधु की भूख अभी तक जीवित है? कितने आश्‍चर्य की बात है।कुछ विचारकर महाराज ने कलम उठायी। कागज पर दो-एक लाइनें लिखीं और बालाजी को बुलाकर आदेश दिया, गुरूजी जब भिक्षा के लिए अपने दरवाजे पर पधारें, तो उनकी झोली में यह कागज डाल देना।
    गुरूजी स्‍नान करके किले के दरवाजे पर पहुँचे। बालाजी ने उनके चरणों में छत्रपति की चिट्ठी डाल दी। गुरूजी ने पत्र देखा। पत्र में लिखा था, गुरूदेव, आज से पूरा राज्‍य आपके चरणों में अर्पित करता हूँ, मैं भी आपके अधीन होना चाहता हूँ।

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    गुरूजी मुस्‍कराये। दूसरे दिन स्‍वयं शिवाजी महाराज के निकट गये और बोले, राज्‍य तो तूने मेरे अधिकार में सौंप दिया है। बेटा, इस तरह तू भी मेरे अधिकार में आ गया है। तो बोल बेटा मेरे राज्‍य में तू क्‍या कार्य करेगा?
    शिवाजी महाराज ने जवाब दिया, जो आप कहें, वही सेवा करने के लिए तत्‍पर हूँ।
गुरूजी बोले, उठा ले यह झोली और चल मेरे साथ-साथ भिक्षा माँगने के लिए।
    हाथ में झोली लेकर शिवाजी गुरूदेव के साथ द्वार-द्वार भटक रहे हैं। महाराज को देखकर छोटे बच्‍चे मकान के भीतर दौङ जाते हैं और देखने के लिए अपने माता-पिता को बुला लाते हैं। सम्राटों को भी दहला देने वाला वीर, अनाथों का, मालिक शिवाजी आज झोली लेकर निकला है, यह देखकर नगर के लोग कहते हैं वाह रे! महापुरूषों की लीला।
    किले के भीतर बारह बजे का डंका बजा। नगर के लोग कामकाज छोङकर विश्राम करने लगे। गुरू रामदास तो अपने इकतारे पर अंगुली चलाते हुए गाते चले जा रहे हैं।
    शिवाजी हँसकर बोले, राजपद का गर्व उतारकर आपने आज मुझे भिखारी बनाया है। हुक्‍म कीजिए, हे गुरूदेव! आपकी और क्‍या ख्‍वाहिश है?
    गुरूदेव ने कहा, अच्‍छा सुन, मेरे लिए जान तक देने की प्रतिज्ञा तुने की है। तो फिर उठा ले मेरा भार। आज तुझे इस न्‍नहीं-सी झोली का ही भार नहीं उठाना है। सिर्फ इस छोटी सी नगरी में ही नहीं घूमना है। आज से मेरे नाम से तू मेरा प्रतिनिधि बनकर दोबारा से यह राजगद्दी संभाल ले। हे पुत्र! मेरा समझकर राज्‍य की रक्षा करना। राजा बनने पर भी भिखारी-सा ह्रदय रखना। मैं आर्शीवाद देता हूँ, साथ ही तुझे अपने यह भगवा कपङे भी देता हूँ। बैरागी के इस कपङे केा राष्‍ट्रध्‍वज बनाकर अपने किले पर फहरा देना। आज से यह राज्‍य, राज्‍य नहीं; इस परमात्‍मा का घर समझना।
    शिवाजी महाराज ने ये वचन सुनकर और भगवे झंडे को संसार में अमर बना दिया।
शिवाजी शिवाजी Reviewed by Kahaniduniya.com on अक्टूबर 13, 2019 Rating: 5

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