पन्‍द्रहवीं पुतली सुन्‍दरवती की कहानी भाग – 16



राजा विक्रमादित्‍य के शासनकाल में उज्‍जैन राज्‍य की समृद्धि आकाश छूने गली थी। व्‍यापारियों का व्‍यापार अपने देश तक ही सीमित नहीं था, बल्कि दूर के देशों तक फैला हुआ था।

उन दिनों एक सेठ हुआ जिसका नाम पन्‍नालाल था। वह बङा ही दयालु तथा परोपकारी था। चारों ओर उसका यश था। वह दीन-दुखियों की सहायता के लिए सतत तैयार रहता था। उसका पुत्र था हीरालाल, जो पिता की तरह ही नेक और अच्‍छे गुणों वाला था।
वह जब विवाह योग्‍य हुआ, तो पन्‍नालाल अच्‍छे रिश्‍तों की तलाश करने लगा। एक दिन एक ब्राह्मण ने उसे बताया कि समुद्र पार एक नामी व्‍यापारी हे जिसकी कन्‍या बहुत सुशील तथा गुण्‍वती है।




पन्‍नालाल ने फौरन उसे आने-जाने का खर्च देकर कन्‍यापक्ष वालों के यहां रिश्‍ता पक्‍का करने के लिए भेजा। कन्‍या के पिता को रिश्‍ता पंसद आया और उनकी शादी पक्‍की कर दी गई।

विवाह का दिन जब समीप आया तो मूसलधार बारिश होने लगी। नदी-नाले जल से भर गए और द्वीप तक पहुंचने का मार्ग अवरूद्ध हो गया। बहुत लम्‍बा एक मार्ग था, मगर उससे विवाह की तिथि तक पहुंचना असम्‍भव था। सेठ पन्‍नालाल के लिए यह बिलकुल अप्रत्‍याशित हुआ। इस स्थिति के लिए वह तैयार नहीं था, इसलिए बेचैन हो गया। उसने सोचा कि शादी की सारी तैयारी कन्‍या पक्ष् वाले कर लेंगे और किसी कारण बारात नहीं पहुंची, तो उसको ताने सुनने पङेंगे और जग हंसाई होगी। जब कोई हल नहीं सूझा, तो विवाह तय कराने वाले ब्राह्मण ने सुझाव दिया कि वह अपनी समस्‍या राजा विक्रमादित्‍य के समक्ष रखें।

उनके अस्‍तबल में पवन वेग से उङने वाला रथ है और उसमें प्रयुक्‍त होने वाले घोङे हैं। उस रथ पर आठ-दस लोग वर सहित चले जाएंगे और विवाह का कार्य शुरू हो जाएगा। बाकी लोग लम्‍बे रास्‍ते से होकर बाद में सम्मिलित हो जाएंगे। सेठ पन्‍नालाल तुरन्‍त राजा के पास पहुंचा और अपनी समस्‍या बताकर हिचकिचाते हुए रथ की मांग की।

विक्रम ने मुस्‍कराकर कहा कि राजा की हर चीज प्रजा के हित की रक्षा के लिए होती है और उन्‍होंने अस्‍तबल के प्रबन्‍धक को बुलाकर तत्‍काल उसे घोङे सहित वह रथ दिलवा दिया।
प्रसन्‍नता के मारे पन्‍नालाल को नहीं सूझा कि राजा विक्रम को कैसे धन्‍यवाद दें। जब वह रथ और घोङे सहित चला गया, तो विक्रम को चिन्‍ता हुई कि जिस काम के लिए सेठ ने रथ लिया है, कहीं वह कार्य भीषण वर्षा की वजह से बाधित न हो जाए।

उन्‍होंने मां काली द्वारा प्रदत्त बेतालों का स्‍मरण किया और उन्‍हें सकुशल वर को विवाह स्‍थल तक ले जाने तथा विवाह सम्‍पन्‍न कराने की आज्ञा दी। जब वर माला रथ्‍ पवन वेग से दौङने को तैयार हुआ, तो दोनों बेताल छाया की तरह रथ के साथ चल पङे।

यात्रा के मध्‍य में सेठ ने देखा कि रास्‍ता कहीं भी नहीं दिख रहा है, चारों और पानी ही पानी है तो उसकी चिन्‍ता बहु बढ गई। उसे सूझ नहीं रहा था कि क्‍या किया जाए? तभी अविश्‍सनीय घटना घटी। घोङो सहित रथ जमीन के ऊपर उङने लगा।
रथ जल के ऊपर ही ऊपर उङता हुआ निश्चित दिशा में बढ रहा था। दरअसल बेतालों ने उसे थाम रखा था और विवाह स्‍थल की ओर उङे जा रहे थे। निश्चित मुहूर्त में सेठके पुत्र का विवाह सम्‍पन्‍न हो गया।


कन्‍या विक्रमादित्‍य ने वर-वधु को आशीर्वाद दिया। सेठ पन्‍नालाल घोङे और रथ की प्रशंसा में ही खोया रहा। राजा विक्रमादित्‍य उसका आशय समझ गए और उन्‍होंने अश्‍व रथ उसे उपहार स्‍वरूप भेंट कर दिए। 
पन्‍द्रहवीं पुतली सुन्‍दरवती की कहानी भाग – 16 पन्‍द्रहवीं पुतली सुन्‍दरवती की कहानी भाग – 16 Reviewed by Kahaniduniya.com on अक्तूबर 31, 2019 Rating: 5

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