चौदहवीं पुतली सुनयना कहानी भाग - 15



चौदहवीं पुतली सुनयना ने जो कथा कही वह इस प्रकार है-
ऱाजा विक्रमादित्‍य सारे नृपोचित गुणों के सागर थे। उन जैसा न्‍यायप्रिय, दानी और त्‍यागी और कोई न था। इन नृपोचित गुणों के अलावा उनमें एक और गुण था। वे बहुत बङे शिकारी थे तथा निहत्‍थे भी हिंसक से हिंसक जानवरों का वध कर सकते थे।

उन्‍हे पता चला कि एक हिंसक सिंह बहुत उत्‍पात मचा रहा है और कई लोगों का भक्षण कर चुका है, इसलिए उन्‍होंने उस सिंह के शिकार की योजना बनाई और आखेट को निकल पङे। जंगल में घुसते ही उन्‍हें सिंह दिखाई पङा और उन्‍होंने सिंह के पीछे अपना घोङा दौङा दिया। वह सिहं कुछ दूर पर एक घनी झाङी में घुस गया। राजा घोङे से कूदे और उस सिंह की तलाश करने लगे।
अचानक सिंह उन पर झपटा, तो उन्‍होंने उस पर तलवार का वार किया। झाङी की वजह से वार पूरे जोर से नहीं हो सका, मगर सिंह घायल होकर दहाङा और पीछे हटकर घने वन में गायब हो गया।



वे सिंह के पीछे इतनी तेजी से भागे कि अपने साथियों से काफी दूर निकल गए। सिंह फिर झाङियों में छुप गया। राजा ने झाङियों में उसकी खोज शुरू की। अनाचक उस शेर ने राजा के घोङे पर हमला कर दिया और उसे गहरे घाव दे दिए। घोङा भय दर्द से हिनहिनाया, तो राजा पलटे। घोङे के घावों से खून का फव्‍वारा फूट पङा।

राजा ने दूसरे हमले से घोङे को तो बचा लिया, मगर उसके बहते खून ने उन्‍हें चिन्तित कर दिया। वें सिंह से उसकी रक्षा के लिए उसे किसी सुरक्षित जगह ले जाना चाहते थे, इसलिए उसे लेकर आगे बढे। उन्‍हें उस घने वन में दिशा का बिलकुल ज्ञान नहीं रहा। एक जगह उन्‍होंने एक छोटी सी नदी बहती देखी। वे घोङे को लेकर नदी तक आए ही थे कि घोङे ने रक्‍त अधिक बह जाने के कारण दम तोङ दिया।

उसे मरता देख राजा दुख से भर उठे। संध्‍या गहराने लगी थी, इसलिए इन्‍होंने आगे न बढना ही बुद्धिमानी समझा। वे एक वृक्ष से टिककर अपनी थकान उतारने लगे। कुछ ही क्षणों बाद उनका ध्‍यान नदी की धारा में हो रहे कोलाहल की ओर गया, उन्‍होंने देखा दो व्‍यक्ति एक तैरते हुए शव को दोनों ओर से पकङे झगङ रहे हैं। लङते-लङते वे दोनों शव को किनारे लाए।
उन्‍होंने देखा कि उनमें से एक मानव मुंडों की माला पहने वीभत्‍स दिखने वाला कापालिक है तथा दूसरा एक बेताल हे जिसकी पाठ का ऊपरी हिस्‍सा नदी के ऊपर उङता-सा दिख्‍ रहा था। वे दोनों उस शव पर अपना-अपना अधिकार जता रहे थे। कापालिक का कहना था‍ कि यह शव उसने तांत्रिक साधना के लिए पकङा है और बेताल उस शव को खाकर अपनी भूख मिटाना चाहता था।

दोनों में से कोई भी अपना दावा छोङने को तैयार नहीं था। विक्रम को सामने पाकर उन्‍होंने उन पर न्‍याय का भार सौंपना चाहा तो विक्रम ने अपनी शर्तें रखीं। पहली यह कि उनका फैसला दोनों को मान्‍य होगा और दूसरी कि उन्‍हें वे न्‍याय के लिए शुल्‍क अदा करेंगे। कापालिक ने उन्‍हें शुल्‍क के रूप में एक बटुआ दिया जो चमत्‍कारी था तथा मांगने पर कुछ भी दे सकता था।
बेताल ने उन्‍हें मोहिनी चंदन काष्‍ठ का टुकङा दिया जिसे घिसकर लगाकर अदृश्‍य हुआ जा सकता था। उन्‍होंने बेताल को भूख मिटाने के लिए अपना मृत घोङा दे दिया तथा कापालिक को तंत्र साधना के लिए शव। इस न्‍याय से दोनों बहुत खुश हुए तथा संतुष्‍ट होकर चले गए।

रात घिर आई थी और राजा को जोरों की भूख लगी थी, इसलिए उन्‍होंने बटुए से भोजन मांगा। तरह-तरह के व्‍यंजन उपस्थित हुए और राजा ने अपनी भूख मिटाईं। फिर उन्‍होंने मोहिनी काष्‍ठके टुकङे को घिसकर उसका चंदन लगा लिया और अदृश्‍य हो गए। अब उन्‍हें किसी भी हिंसक वन्‍य जन्‍तु से खतरा नहीं रहा।

अगली सुबह उन्‍होंने काली द्वारा प्रदत्त दोनों बेतालों का स्‍मरण किया तथा अपने राज्‍य की सीमा पर पहुंच गए। उन्‍हें महल के रास्‍ते में एक भिखारी मिला, जो भूखा था। राजा ने तुरन्‍त कापालिक वाला बटुआ उसे दे दिया, ताकि जिंदगीभर उसे भोजन की कमी न हो। 
चौदहवीं पुतली सुनयना कहानी भाग - 15 चौदहवीं पुतली सुनयना कहानी  भाग - 15 Reviewed by Kahaniduniya.com on अक्तूबर 31, 2019 Rating: 5

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