तोते ने सिखाया स्‍नेह के साथ स्‍वतंत्रता का पाठ

एक लकङहारा नित्‍य जंगल से लकङियां काटकर और उन्‍हें बेचकर अपना जीवनयापन करता था। उसकी पत्‍नी का देहांत हो चुका था और वह नि:संतान था। वह प्राय: उदास रहता था। एक दिन जब वह लकङियां काटकर घर आ रहा था, तो उसे एक घायल तोते की आवाज सुनाई दी।



तोता कंटीली झङी में फंसा हुआ था। लकङहारे ने तोते के शरीर में चुभे कांटे निकाले और उसके घाव धो दिए। फिर वह तोते को घर ले आया और उसका उपचार किया। तोता धीरे-धीरे स्‍वस्‍थ हो गया। लकङहारे ने उसके लिए एक खूबसूरत पिंजरा बनाया और उसमें तोते को बंद कर दिया। सुबह-शाम वह उसे अच्‍छा खना खिलाता और ढेर सारी बातें करता। लकङहारे के प्‍यार से तोता बहुत खुश था, फिर भी उसके मन में व्‍याकुलताबनी रहती। जब अन्‍य पक्षी आसमान से उङते हुए गुजरते तो तोता भी उङान भरने के लिए छटपटाने लगाता। एक दिन लकङहारा तोते को खाना देने के बाद पिंजरे का दरवाजा बंद करना भूल गया। तोते ने सोचा, आज मौका अच्‍छा है। पंख रहते पिंजरे में क्‍यों बंद रहूं? बस, तोता उङ गया। लकङहारा घर में तोते को न पाकर बेहद दुखी हुआ। उसे लगा मानो उसका पुत्र उसे दगा देकर भाग गया। उसका खाना-पीना छूट गया। एक दिन वह पेङ के नीचे बैठा रो रहा था कि संयोग से वही तोता आकर उसके कंधे पर बैठ गया। दोनों ने एक-दूसरे के कष्‍ट को समझा। अब लकङहारा तोते को पिंजरे में बंद नहीं करता और तोता भी उसे छोङकर नहीं जाता। दोनों खुश रहने लगे।


सारांश यह है कि जीवन के समुचित विकास के लिए स्‍नेह व स्‍वतंत्रता का सही तालमेल होना जरूरी है। 
Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 08, 2019 Rating: 5

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