दुकानदार पर वह अच्छा प्रभाव नहीं छोङ
पाया
एक दुकानदार को नौकर की सख्त जरूरत थी।
उसने अपने मिलने-जुलने वालों से कह रखा था कि कोई पढा-लिखा, ईमानदार आदमी मिल जाए
तो बताना, क्योंकि मैं अकेला हूं। जब कभी बाहर सामान लेने जाता हूं या किसी अन्य
काम से यहां-वहां जाता हूं तो मुझे दुकान बंद ही करनी पङती है। कहते हैं ग्राहक और
मौत का क्या ठिकाना? कब आए और लौट जाए। कुछ दिनों बाद ही दुकानदार का एक मित्र एक
युवक को साथ लेकर दुकान पर पहुंचा। युवक मुसीबत का मारा था और नौकरी की तलाश में
था। दुकान के मालिक ने उसकी योग्यता के बारे में पूछाताछ करने के बाद कहा-ठीक है,
आप अभी अपने घर जाइए। मैं सोचकर उत्तर दूंगा और आपके घर सूचना भिजवा दूंगा। युवक
निराश होकर अपने घर चला गया। जो दुकानदारकी मदद के लिए उस लङके को लाया था उस
मित्र ने पूछा-भैया, आपको व्यापार के लिए एक व्यक्ति की सख्त जरूऱत थी, इसलिए
मैं उस युवक को आपके पास लाया था। मेरी दृष्टि में वह युवक परिश्रमी, ईमानदार और
पढा-लिखा है, पर आपने उसे टाल दिया। दुकानदार ने उत्तर दिया-पर उसमें एक कमी थी।
मेरे प्रश्नों के उत्तर उसने दिए तो, पर
श्रीमान् महोदय या साहब जैसे शिष्टता सूचक शब्दों का कहीं प्रयोग उसने नहीं
किया। व्यापार की सारी सफलताएं शिष्ट व्यवहार पर ही टिकी होती हैं। शिष्टता के
अभाव में तो मेरा सारा व्यापार ही चौपट हो जाएगा। दुकानदार ने अपने मित्र को
समझाया।
कहानी का गूढार्थ यह है कि वही व्यक्ति
श्रेष्ठ है, जो अपने शिष्ट आचार-व्यवहार से दूसरों के ह्रदय पर विजय प्राप्त
कर सकता है।
उत्तम विचार - डूबने वाले के
साथ सहानुभूति उसके साथ डूबने में नहीं, उसे बचाने में है।
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