भारत रत्न डॉ विश्वेश्वरैया अति
विद्वान होने के साथ-साथ नियमों के भी पक्के थे। वे कहीं भी जाते और संबंधित संस्थान
या स्थान उनकी विशिष्टता का हवाला देकर नियमों में छूट का आग्रह करता तो वे स्वयं
उसे अस्वीकार कर देते। उनकी दृष्टि में बङे से लेकर छोटे तक सभी के लिए नियम का
पालन करना अनिवार्य था। उनका नाम जब भारतरत्न की उपाधि के लिए चुना गया तो उन्हें
इसकी सूचना देते हुए उनसे राष्ट्रपति भवन में ही रूकने का आग्रह भी किया गया। जब
डॉ विश्वेश्वरैया यह सम्मान लेने दिल्ली पहुंचे तो राष्ट्रपति भवन में ही
ठहरे किंतु राष्ट्रपति भवन का यह नियम था कि कोई भी मेहमान तीन दिन से ज्यादा
वहां नहीं ठहर सकता। अलंकरण समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद
ने उन्हें भारतरत्न की उपाधि प्रदान की। चौथे दिन सुबह-सुबह ही डॉ विश्वेश्वरैया
ने राष्ट्रपति भवन का अपना निवास कक्ष छोङ दिया और राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र
प्रसाद से विदा लेने उनके कार्यालय पहुंच गए। राष्ट्रपति ने दो-चार दिन और ठहरने
का आग्रह किया, किंतु डॉ विश्वेश्वरैया ने कहा कि मैं अब तनिक भी यहां ठहरने में
असमर्थ हूं। डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा कारण पूछने पर वे बोले कि मैं तीन दिन से
अधिक ठहरकर राष्ट्रपति भवन के नियम को तोङना नहीं चाहता। यह कहकर वे रवाना हो गए,
किंतु नियम भंग नहीं किया।
वस्तुत: किसी भी संस्थान के नियम आम और खास सभी
के लिए एक होते हैं। यदि खास लोग अपनी विशिष्ट अधिकार संपन्नता को परे रख
यथाविधि नियम पालन करें तो वह आम लोगों के लिए भी आदर्श बन जाते हैं।
बङे पद वाले के लिए भी नियम तो नियम ही है
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 22, 2019
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