आखिरकार संत तेप्‍युजेन का संकल्‍प रंग लाया


यह घटना उस समय की है जब ‘बौद्ध सूत्र’ ग्रंथ केवल चीनी लिपि में ही उपलब्‍ध था। जापानी संत तेप्‍युजेन की तीव्र अच्‍छा थी कि जापानी लिपि में भी इस ग्रंथ को प्रकाशित करवाया जाए ताकि चीनी न जानने वाले जापानी भी इसे पढकर इससे लाभान्वित हो सकें। जापानी भाषा के ब्‍लॉक बनवाने में धन प्रचुर मात्रा में चाहिए था। इसके लिए तेप्‍युजेन ने चंदा एकत्रित करना शुरू किया। वे प्रतिदिन अपने परिवार, सार्वजनिक स्‍थानों व संस्‍थाओं के पास जाते और उन्‍हें अपना उद्देश्‍य बताकर चंदा मांगते। पांच वर्ष की कङी मेहनत से उन्‍होंने पर्याप्‍त धनराशि एकत्रित कर ली, किंतु जब वे इस कार्य को आरंभ करने ही वाले थे कि जापान की प्रसिद्व नदी युजी में बाढ आ गई।
संत को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्‍होंने सारा धन संकटग्रस्‍त लोगों के सेवाकार्य में खर्च कर दिया। ग्रंथ के लिए फिर तेप्‍युजेन ने चंदा जुटाया। चार-पांच वर्षो की मेहनत के बाद ग्रंथ कार्य के लिए आवश्‍यक धन का प्रबंध उन्‍होंने किया, किंतु इस बार देश में महामारी का प्रकोप हो गया। संत ने पुन: मानव सेवा में धन व्‍यय कर दिया। इस प्रकार तेप्‍युजेन को तीसरी बार परिश्रम करना पङा। तब जाकर पंद्रह-सोलह वर्ष की लंबी अवधि के बाद जापानी भाषा का ब्‍लाक तैयार हुआ और सूत्र ग्रंथ जापानी भाषा में प्रकाशित हो पाया।

घटना का संकेत यह है कि कभी-कभी साधनों की सीमितता के चलते दो कल्‍याणकारी कार्यो में से एक को चुनना पङे तो उस कार्य को वरीयता देनी चाहिए, जो बहुसंख्‍य लोगों के त्‍वरित कल्‍याण से जुङा हो।


उत्‍तम विचार – मनुष्‍य की सर्वश्रेष्‍ठ देन श्रेष्‍ठ विचार हैं, जो आने वाली पीढियों को प्रभावित करते हैं।
आखिरकार संत तेप्‍युजेन का संकल्‍प रंग लाया                आखिरकार संत तेप्‍युजेन का संकल्‍प रंग लाया Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 22, 2019 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

nicodemos के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.