एक राजा बङा बुद्धिमान और व्यक्तियों का
बङा कद्रदान था। उसके दरबार में प्राय: ऐसी प्रतिस्पर्द्धाओं का आयोजन होता था,
जो बुद्धि और चतुराई पर केंद्रित होती थी। इनमें से जीतने व़ाले को राजा की ओर से
बङा पुरस्कार और सम्मान दिया जाता था। एक बार राजा अपने दरबारियों के बीच बैठा
था। परस्पर बातचीत में उसे मालूम हुआ कि साहूकार बङे बुद्धिमान और होशियार होते
हैं। वे सभी प्रकार की चीजों का मूल्य आंक लेते हैं। राजा ने अपने मंत्री को
भेजकर नगर के एक प्रसिद्ध साहूकार को बुलवाकर कहा-यह मेरा पुत्र है। इसका मोल
बताओ। साहूकार घबरा गया, क्योंकि वह वस्तुओं की परख कर सकता था, इंसानों की
नहीं। उसने राजा से कुछ दिनों की मोहलत ली और एक बुजुर्ग साहूकार से सलाह ली।
बुजुर्ग साहूकार अनुभवी था। उसने तुरंत उपाय बता दिया। अगले दिन साहूकार दरबार में
पहुंचा और राजा से बोला-राजकुमार के दाम तो ठीक-ठीक बात दूंगा, किंतु आप बुरा मत
मानना। यह कहते हुए उसने राजकुमार का ललाट छूकर कहा-राजन, ललाट के लेख का तो कोई
मूल्य नहीं हो सकता, वैसे राजकुमार दो आने रोज का मजदूर है। राजा समझ गया कि किस्मत
की कीमत कोई नहीं आंक सकता। किंतु यदि राजकुमार मजदूरी करे तो उसे दो आने से अधिक नहीं
मिलेंगे। राजा ने साहूकार की बुद्धिमानी देख उसे पुरस्कृत किया।
सार यह है कि सूझबूझ और अनुभव का कोई जोङ
नहीं होता। यदि बङे से बङे संकट भी आ जाए तो सूझबूझ से काम लेने पर संकट टल सकता
है।
बुद्धिमान साहूकार ने अपनी सूझबूझ से टाला संकट
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 24, 2019
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