मृत्‍यु के बाद शिष्‍य ने जाना सुखी रहने का रहस्‍य


एक आश्रम में महात्‍मा और उनके दो शिष्‍य रहते थे। दोनों शिष्‍य महात्‍मा के कहे अनुसार भगवान का भजन-पूजन करते। आश्रम के कार्य भी अत्‍यंत लगन से दोनों ही करते थे। आश्रम की सफाई, पेङ-पौधों की देखरेख, पशुधन का रखरखाव और महात्‍माजी की सेवा इन्‍हीं दोनों शिष्‍यों के जिम्‍मे थी, जिसे व निष्‍ठापूर्वक किया करते थे। किंतु इनमें से एक शिष्‍य सदा दुखी रहता और दूसरा हमेशा खुश रहता, जबकि दोनों की स्थितियां और वातावरण एक समान थे। पहला छोटी-छोटी बात पर परेशान हो जाता और दूसरा विपरीत बातों में भी कुछ अच्‍छा खोजकर प्रसन्‍न हो जाता। कुछ दिनों बाद महात्‍मा की मृत्‍यु हो गई। दो ही दिनों के अंतराल से दोनों शिष्‍य भी काल कवलित हुए। देवयोग से स्‍वर्गलोक में तीनों एक ही स्‍थान पर आ मिले, किंतु यहां भी पहला शिष्‍य अशांत था और दूसरा प्रसन्‍न। दुखी शिष्‍य ने गुरूदेव से पूछा-गुरूजी, लोग कहते हैं ईश्‍वर भक्ति से स्‍वर्ग में सुख मिलता है, किंतु हम तो यहां भी दुखी के दुखी रहे। तब महात्‍मा बोले-वत्‍स, भक्ति से स्‍वर्ग तो मिल सकता है, किंतु सुख और दुख तो मन की देन है। मन शुद्ध हो तो नर्क में भी सुख है और यदि मन शुद्ध नहीं हो तो स्‍वर्ग में भी दुख है। मन:स्थिति का बदलने की कोशिश की जाए तो वह हर कही दुखद परिणाम ही देती है।


वस्‍तुत: प्रत्‍येक स्थिति मे प्रसन्‍न रहने वाला प्रतिकुलता में भी अनुकूलता खोज लेता है और दुख व निराशा पर विजय प्राप्‍त कर सदा सुखी बना रहता है।


उत्तम विचार – जीवन की सार्थकता परमार्थ में है, स्‍वार्थ में नहीं।
मृत्‍यु के बाद शिष्‍य ने जाना सुखी रहने का रहस्‍य मृत्‍यु के बाद शिष्‍य ने जाना सुखी रहने का रहस्‍य Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 24, 2019 Rating: 5

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