सृजन में होना चाहिए शक्ति का प्रवाह


आजकल समझाया जाता है कि क्रिएटिव बनें, जीवन में सृजनात्‍मक हार्ड और नॉन स्‍टाप वर्किंग में विश्‍वास करने वाली नई पीढी पूछती है आखिर यह सृजन है क्‍या? भौतिक संसार के शब्‍दों को पकङें तो सृजन की परिभाषा करना थोङा कठिन है। आध्‍यात्मिक शब्‍दावली को पकङें तो सृजन आसानी से समझ मे आ जाएगा। जो भी काम आप अपने आनंद के लिए कर रहे हों, जिस भी क्रिया से आपके आनंद का निर्माण होता हो, वह सृजन है। यदि आप अपने व्‍यवसाय में भी आनंद उठा रहे हैं तो समझ ले सृजन ही कर रहे हैं। आनंद को समझ लें, न खुशी न गम इन दोनों से परे। सुख का विपरीत दुख, प्रसन्‍नता का उदासी, लेकिन आनंद का कोई विपरीत नहीं हैं। वह पूर्ण हैं 

इसलिए जिसके परिणाम में आनंद जैसी पूर्णता हो, वही क्रिया सृजन कही जाएगी। सृजन की वृत्ति का एक और फायदा है। सभी के भीतर एक स्‍वाभाविक शक्ति होती है। इस शक्ति का प्रवाह बाहर की ओर रहता हैं। यदि इस शक्ति का उपयोग सृजन करते हुए आनंद से नही जोङा गया तो यह विनाश, विकृति और अशांति की ओर बहेगी। इसलिए इस शक्ति को सृजन की ओर बहाव दें। आपकी जो भी आजीविका का साधन हो, थोङा समय सृजन के लिए जरूर रखें। हम देखते हैं संतों के भीतर जो ब्रह्राचर्य घटना है इसके पीछे भी सृजन की वृत्ति होती हैं।

जो जितना सृजनशील है, वह उतना ही क्रोध, काम, लोभ से मुक्‍त होगां हमारी स्‍वाभाविक शक्ति जब सृजन में बदलती है तो वह शरीर और मन दोनों को शुद्व भी कर जाती है। शुद्वता अध्‍यात्‍म का आवश्‍यक तत्‍व है।


उत्‍तम विचार – हम तभी असफल होते हैं, जब अपनी असफलता से कुछ नहीं सीखते। 
सृजन में होना चाहिए शक्ति का प्रवाह                                     सृजन में होना चाहिए शक्ति का प्रवाह Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 16, 2019 Rating: 5

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