एक वृक्ष पर एक बटेर घोंसला बनाकर रहता
था। वह अत्यंत दयालु और परोपकारी था। अनेक पक्षी भी आसपास घोंसले बनाकर रहा करते
थे। जब वे पक्षी दाना चुगने के लिए चले जाते, तो बटेर उनके बच्चों की रखवाली
करता। इस कारण सभी पक्षी बटेर का बहुत सम्मान करते थे। वहीं एक चील भी रहती थी।
वह बटेर से ईर्ष्या रखते हुए पक्षियों को बटेर के विरूद्व भङकाने का प्रयास करती।
हालांकि इसके बावजूद बटेर के मन में चील के प्रति कोई बैर नहीं था।
एक दोपहर की बात है। बटेर को चील के बच्चों
के चीखने-चिल्लाने की आवाज आई, तो वह बाहर आया। देखा कि एक नाग चील के घोंसले की
ओर बढ रहा है। बटेर ने उसे दुत्कार कर भगा दिया। नाग ने भी क्रुद्व होकर होकर
बटेर से बदला लेने की शपथ खाई। इधर जब चील आपस आई तो तो बच्चों ने उसे बटेर
द्वारा नाग से उनकी प्राण रक्षा की बात बताई, लेकिन इसके बावजूद उसमें बटेर के
प्रति सदभाव न उपजा। उसने सोचा कि बटेर का प्रभाव बढता जा रहा है और वह कहीं
पक्षीराज न बन बैठे। यह सोचकर वह गिद्व के पास पहुंची और दोनों ने मिलकर बटेर की
हत्या करने की योजना बनार्इ। जब दोनों रात को निद्रामग्न बटेर को मारने पहुंचे
तो देखा कि नाग भी बटेर को मारने आ रहा है। चील, गिद्व और नाग में पुरानी शत्रुता
है। तीनों ने जब एक-दूसरे को देखा तो बटेर को मारना भूलकर आपस में लङने लगे और
तीनों मृत्यु को प्राप्त हो गए।
कथा का मर्म यही है कि दुष्टता और उपकार
विनाश के जनक होते हैं। इनसे यथासंभव बचना चाहिए।
उत्तम विचार – अच्छे विचारों में सदैव
सकारात्मक संभावनाएं छिपी होती है।
दृष्टता हमेशा विनाश की ही जनक होती है
Reviewed by Kahaniduniya.com
on
सितंबर 16, 2019
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