आखिरकार वह युवक अपराधी बन गया

तगङे शरीर वाला एक नवयुवक भूख से व्‍यासकुल, भीख मांगते हुए सङक के किनारे बैठा था। उसके होंठ सूख और हाथ पैर खाली थे। जब किसी ने उसे भीख नहीं दी तो वह फूट-फूटकर रोने लगा। फिर सजल नेत्रों से आकश की ओर देखकर बोला-हे प्रभु। मैंने धनवानों से नौकरी के लिए प्रार्थना की किंतु उनहोंने मुंह फेर लिया। फिर मैंने विद्वानों का द्वार खटखटाया। उन्‍होंने भी मदद से इनकार कर दिया। मैंने कोई भी काम, जिससे मुझे रोटी मिले, तलाश किया किंतु सब व्‍यर्थ। आखिरकार मैंने भीख मांगी, किंतु तेरे पुजारियों ने मुझे देखा और कहा-ये तो काफी हट्टा-कट्टा है, नौजवान है, इसे भीख नही मांगना चाहिए। 

काम भी नहीं, भीख भी नहीं। फिर मैं जिंदा कैसे रहूं? हे स्‍वामी। तुम्‍हारी इच्‍छा से मेरी मां ने मुझे जन्‍म दिया। लेकिन इस धरती पर अब मेरा गुजारा कैसे हो समझ से परे है। तभी अचानक उसकी मुद्रा बदल गई। वह उठा। उसने वृक्ष की शाखा से एक मोटा डंडा बनाया औश्र चिल्‍लाते हुए आकाश की ओर उठाया-मैंने अपनी वाणी की समस्‍त शक्ति से रोटी मांगी किंतु मुझे इनकार कर दिया गया। मैं उसे अपनी शारीरिक शक्ति से प्राप्‍त करूंगा। मैंने दया और प्रेम के नाम पर रोटी मांगी किंतु किसी ने ध्‍यान नहीं दिया। मैं उसे अब पाप के नाम पर प्राप्‍त करूंगा। बीते हुए वर्षो ने उस नवयुवक को अपराधी बना दिया। उसने बेहिसाब दौलत इकट्ठा की। अब वह उनका कृपा पात्र बन गया जिनके हाथों में सत्‍ता थी और अत्‍याचारियों का प्रबल पक्षधर।

सार यह है कि यदि नि:स्‍वार्थ भाव से जरूऱ्तमंदों की मदद की जाए तो समाज कुछ हद तक अपराधियों से मुक्‍त हो सकता है।


उत्‍तम विचार – क्रोध से मनुष्‍य दूसरों की ही बेइज्‍जती नहीं करता, स्‍वयं की प्रतिष्‍ठा भ गंवाता है। 
आखिरकार वह युवक अपराधी बन गया                           आखिरकार वह युवक अपराधी बन गया Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 16, 2019 Rating: 5

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