उसने बच्‍चों को चने का एक दाना भी नहीं दिया


एक स्‍त्री की कोई संतान नहीं थी, इसलिए वह बहुत दुखी रहती थी। जिसने जो उपाय बताया उसने वह किया, पर कोई लाभ नहीं हुआ। किसी ने उसे संत चिदंबर दीक्षित का पता दिया और कहा-वहां जा, जो मांगेगी, मिलेगा। संत चिदंबर पहुंचे हुए संत थे। वह स्‍त्री संत चिदंबर के पास जा पहुंच। उस समय उनके यहां भक्‍तों की भीङ लगी थी। संत ने उस स्‍त्री को मुट्ठीभर भुने हुए ने दिए और कहा-सामने पेङ के नीचे बैठकर ये चने खाओं। मैं तुम्‍हें थोङी देर बाद बुलाता हूं। 

वह स्‍त्री पेङ के नीचे बैठकर चने खने लगी। वहां आसपास कुछ छोटे बच्‍चे खेल रहे थे। उस स्‍त्री केा कुछ खाते देखकर वे बच्‍चे उसके पास आकर खङे हो गए और बोले-हमें भी खाना है। थोङे से चने दो ना। य हसुन वह स्‍त्री चिढ गई और बोली-कुछ नहीं दुंगी। भागों यहां से। सभी बच्‍चे भाग गए, किंतुएक छोटा बच्‍चा जिद करके खङा रहा और बोला-अकेले-अकेले क्‍यों खाती हो? मुझे भी खिलाओं। स्‍त्री ने उसे जोर से डांटा। वह डरकर भाग गया। जब उसके चने खत्‍म हो गए, तो संत ने महिला को बुलाकर उसके आने का कारण पूछा। उसने संतान की इच्‍छा प्रकट की। संत बोले-संतान उसी को हो सकती है जिसका मन विस्‍तृत होता है और प्रेम करना जानता है। तू मुट्ठीभर चने भी बच्‍चों से मिल-बांटकर नहीं खा सकी, तो भगवान तुझे संतान कैसे देगा? जा वापस चली जा। स्‍त्री निरूत्‍तर हो गई।

सार यह है कि विस्‍तार ही जीवन है और सिमटना मृत्‍यु। जो सभी से स्‍नेह करता है वही जीता हे और पाता भी है, मगर जो स्‍वार्थी है वह जीते हुए भी मरे के समान है क्‍योंकि प्रतिफल में उसे उपेक्षा ही मिलती है।


उत्‍तम विचार – जो अपने मुख और जुबान पर संयम रखता है, वह अपनी आत्‍मा को संतापों से बचाता है। 
उसने बच्‍चों को चने का एक दाना भी नहीं दिया                         उसने बच्‍चों को चने का एक दाना भी नहीं दिया Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 16, 2019 Rating: 5

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