अहंकार ने बना दिया एक धनवान को भिखारी    

एक भिखारी था। उसका बूढा शरीर सूखकर कांटा हो गया था। उसकी आंखों की ज्‍योति चली गई थी और उसे कोढ भी हो गया था। बेचारा रास्‍ते के एक ओर बैठकर गिङगिङाते हुए भीख मांगा करता था। एक युवक उस रास्‍ते से रोज निकलता था। भिखारी को देखकर उसे बहुत बुरा लगता। उसका मन बहुत दुखी होता । वह सोचताा, वह बूढा क्‍यों भीख मांगता है? भगवान उसे उठा क्‍यों नहीं लिया। एक दिन उससे रहा न गया। वह भिखारी के पास गया और बोला-बाबा, तुम्‍हारी ऐसी हालत हो गई है, फिर भी तुम जीना चाहते हो? भीख मांगते हो। ईश्‍वर से यह प्रार्थना क्‍यों नहीं करते कि वह तुम्‍हें अपने पास बुला ले। भिखारी उसकी बात सुनकर कुछ बोला नहीं। नौजवान ने झुककर कहा-बाबा, मेरी बात का जवाब क्‍यों नहीं देते? भिखारी बोला-भैया, तुम जो कह रहे हो, वही बात मेरे मन में भी उठती है। मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं, पर वह मेरी सुनता नहीं। एक समय था 

जब मैं बहुत धनवान था, लेकिन मुझे अपने धनी होने का बेहद गुमान था, जिसके चलते में अहंकार में भरकर किसी का भी अपमान करने या बुरे कम्र करने से नहीं चूकता था। शायद इसीलिए ईश्‍वर चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं। लोग मुझे देखें। पहले मैं भी उन्‍हीं की तरह था, लेकिन वह दिन भी आ सकता है, जबकि वे मेरी तरह हो सकते है। इसलिए कभी भी घंमड नहीं करना चाहिए। लङका भिखारी की ओर देखता रह गया। उसने जो कहा था, उसमें बङी सच्‍चाई समायी हुई थी।

सार यह है कि कितने भी समृद्व क्‍यों न हो जाओं, इंसानियत और परोपकार की भावना कभी मिटनी नहीं चाहिए।

उत्‍तम विचार-मनुष्‍य के लिए अध्‍ययन उतना ही जरूरी है, जितना कि शरीर के लिए व्‍यायाम 
Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 09, 2019 Rating: 5

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