फ्रांस के प्रसिद्व दार्शनिक थे ज्यां
पाल सार्त्र। उनका जीवन कठिनाइयों से भरा था किंतु उन्हें वे स्वयं की जिंदादिली
पर हावी नहीं होने देते थे। उदासी व निराशा से वे स्वयं को कोसों दूर रखते थे। वे
स्वयं भी प्रसन्न रहते और दूसरों को भी प्रसन्न रहने की प्रेरणा देते थे।
ज्यां पाल सार्त्र की एक आंख पहले से ही
खराब थी। उन्हें पढने का बहुत शौक था। चिकित्सकों ने उन्हें सलाह दी कि वे
लिखना-पढना बिलकुल बंद कर दें अन्यथा उनकी दूसरी आंख भी खराब हो जाएगी, किंतु
सार्त्र ने लिखना-पढना बंद नहीं किया। वे निष्क्रिय होकर बैठने
पसंद नहीं करते थे।
उन्होंने अपने परिवार को राजी कर लिया कि कोई भी एक व्यक्ति प्रतिदिन उन्हें
पुस्तक पढकर सुनाएगा। इस प्रकार परिवार की मदद से उन्होनें अध्ययन किया और एमए
की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके अतिरिक्त सार्त्र ने अनेक पुस्तकें दूसरों को
बोल-बोलकर लिखाई। इन पुस्तकों ने करोङों लोगों केा श्रेष्ठ व आनंददायक जीवन
बिताने की प्रेरणा दी। वृद्वावस्था में सार्त्र की दूसरी आंख भी खराब हो गई। एक
प्रकार से वे अंधे ही हो गए। फिर भी उन्होंने प्रसन्नता का दामन नहीं छोङा। तब
भी लोग उनके पास आते थे और सुखी जीवन के सूत्र लेकर जाते थे। इस काम के लिए उन्होंने
प्रतिदिन कुछ समय निर्धारित कर दिया था। इस प्रकार सार्त्र ने अपनी कार्यशैली से
दुनिया को यह बता दिया कि मनुष्य में आसीम सामर्थ्य छिपा होता है। यदि वह उसको
पहचाने और उसका उचित प्रयोग करे तो जीवन अत्यंत उन्नत, सफल और आनंदमय तथा समाज
के लिए उपयोगी बन सकता हैं।
सार – परमार्थ करने वाला स्वयं भी सदैव
आनन्द की अनुभुति करता है। अपने सामर्थ्य अनुसार दूसरों को खुशी देने में ही
जीवन का सार छुपा है।
उत्तम – विचार जो व्यक्ति अपने काम को
समझ् लेता है, वही अपना सच्चा साथी बन सकता है।
सार्त्र की जिंदादिली से मिलती है प्रेरणा
Reviewed by Kahaniduniya.com
on
सितंबर 14, 2019
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