प्राचीन काल में एक राजा था। वह संत-महात्माओं
का बङा आदर करता था। एक बार उसके राज्य में किसी पहुंचे हुए संत का आगमन हुआ।
राजा ने अपने सेनापति को उन्हें ससम्मान दरबार में लाने का आदेश दिया। सेनापति
एक सुसज्जित रथ्ज्ञ लेकर संत के पास पहुंचा। राजा के आमंत्रण की बात सीधे कहने के
स्थान पर सेनापति ने विनम्रता से सिर झुकाकर अभिवादन करने के बाद कहा-हमारे
महाराज ने प्रणाम भेजा हैं यदि आप अपनी चरण रज से उनके आवास को पवित्र कर सकें, तो
बङी कृपा होगी। संत राजमहल चलने के लिए तैयारी करने लगे। संत अत्यंत नाटे कद के
थे। उन्हें देखकर सेनापति को यह सोचकर हंसी आ गई कि इस ठिगने व्यक्ति से उनका
लंबा-चौङा और बलिष्ठ राजा आखिर किस तरह का विचार-विमर्श करना चाहता है? संत
सेनापति के हंसने का कारण समझ गए।
संत ने सेनापति से इस बाबत पूछा तो वह
बोला-आप मुझे क्षमा करें। वास्तव में आपके कद पर ही मुझे हंसी आ गई, क्योंकि
हमारे महाराज बहुत लंबे हैं। उनके साथ बात करने के लिए आपको तख्त पर चढना पङेगा।
संत ने मुस्कुराकर कहा-मैं जमीन पर रहकर ही तुम्हारे महाराज से बात करूंगा। छोटा
कद का लाभ यह होगा कि मैं जब भी बात करूंगा, सिर उठाकर करूंगा। लेकिन तुम्हारे
महाराज लंबे होने के कारण मुझसे जब भी बात करेंगे, सिर झुकाकर करेंगे। सेनापति को
संत की महानता का आभास हो गया।
वस्तुत: श्रेष्ठता कद से नहीं सदविचारों से आती
है। विचार यदि उत्तम और ज्ञानयुक्त हों तो व्यक्ति सच्चे अर्थो में महान बनकर
सम्मानीय हो जाता हैं।
कद से नहीं विचारों उंचा बनता है इंसान
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 15, 2019
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