लालची सम्राट को उसके गुरू ने दिखाई सही राह

एक बहुत लालची सम्राट था। वह दूसरे राज्‍यों पर आक्रमण कर उन्‍हें जीत लेता और उनकी संपत्ति अपने खजाने में लाकर डाल देता। और यहां तक कि वह अपने राज्‍य्‍ की जनता को भी नहीं छोङता था। उसने अपनी प्रजा पर विभिन्‍न कर लगा रखे थे, जिनसे उसे प्रत्‍येक माह मोटी रकम प्राप्‍त होती थी। उसकी इस लोभ वृत्ति से सभी बहुत परेशान थे। अपार धन संपत्ति का मालिक होने के बावजूद वह राज्‍य के निर्धनों को किसी प्रकार की सहायता भी नहीं देता था। जब उसके गुरू को ये बातें मालूम हुई तो एक दिन वे उसके पास आए और उसका खजाना देखने की इच्‍छा प्रकट की। 

सम्राट ने गर्व के साथ उन्‍हें अपना संपूर्ण धनागार खोलकर दिखाया। जवाहरात, रीरे, माणिक, पन्‍ना आदि रत्‍नों का अंबार वहां लगा था। उन्‍हें देखकर गुरू ने पूछा-इन रत्‍नों से तुम्‍हें कितनी कमाई हो जाती है? सम्राट ने उत्‍तर दिया-इनसे कमाई नहीं होती, उल्‍टे रखवाली के य्‍प में पहरेदार रखने के कारण इन पर खर्च होता हैं गुरू बोले-इन्‍हें रखने से खर्च होता है। चलो मेरे साथ, मैं तुम्‍हें इससे भी बढिया पत्‍थर दिखलाउ। गुरू ऊसे दूर एक गांव में ले गए, जहां एक घर में एक गरीब विधवा चक्‍की चला रही थी। गुरू ने कहा-देखो, यह चक्‍की तुम्‍हारे पत्‍थरों से ज्‍यादा कीमती और उपयोगी हैं। यह गेहूं पीसती है जिससे लोगों की भूख मिटती हे और इस विधवा को कमाई भी होती है। इसलिए वास्‍तविक रत्‍न तो यह है। उस दिन से सम्राट की आंखे खुल गई और उसने लोभ करना छोङ दिया।

संग्रह में आवश्‍यकता और उदारता का उचित समन्‍वय होना चाहिए
अर्थात जरूऱ्त के मुताबिक संग्रह करें और जरूऱतमंदों को दान भी करें। 
Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 06, 2019 Rating: 5

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