महात्‍मा गांधी का प्रारंभिक जीवन


जब उनकी आयु 7 वर्ष की रही होगी। मोहनदास करमचन्‍द गांधी का जन्‍म पश्चिमी भारत में वर्तमान गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर नामक स्‍थान पर 2 अक्‍टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी सनातन धर्म की पंसारी जाति से सम्‍बन्‍ध रखते थे और ब्रिटिश राज के समय काठियावाङ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मंत्री थे। गुजराती भाषा में गांधी का अर्थ है पंसारी जबकि हिन्‍दी भाषा में गांधी का अर्थ है इत्र फुलेल बेचने वाला जिसे अंग्रेजी में परफ्‍यूमर कहा जाता है। उनकी माता पुतलीबाई परनामी वैश्‍य समुदाय की थीं। पुतलीबाई करमचंद की चौथी पत्‍नी थी। उनकी पहली तीन पत्नियाँ प्रसव के समय मर गयीं थीं। भक्ति करने वाली माता की देखरेख और उस क्षेत्र की जैन परम्‍पराओं के कारण युवा मोहनदास पर वे प्रभाव प्रारम्‍भ में ही पङ गये थे जिन्‍होंने आगे चलकर उनके जीवन में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभायी। इन प्रभावों में शामिल थे दुर्बलों में जोश की भावना, शाकाहारी जीवन, आत्‍मशुद्धि के लिये उपवास तथा विभिन्‍न जातियों के लोगों के बीच सहिष्‍णुता।

कम आयु में विवाह


मई 1883 में साढे 13 साल की आयु पूर्ण करते ही उनका विवाह 14 साल की कस्‍तूरबा माखनजी से कर दिया गया। पत्‍नी का पहला नाम छोटा करके कस्‍तूरबा कर दिया गया और उसे लोग प्‍यार से बा कहते थे। यह विवाह उनके माता-पिता द्वारा तय किया गया व्‍यवस्थित बाल विवाह था जो उस समय उस क्षेत्र में प्रचलित था। लेकिन उस क्षेत्र में यही रीति थी कि किशोर दुल्‍हन को अपने माता पिता के घर और अपने पति से अलग अधिक समय तक रहना पङता था। 1885 में जब गांधी जी 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्‍तान ने जन्‍म लिया। लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। और उसी साल उनके पिता करमचन्‍द गांधी भी चल बसे। मोहनदास ओर कस्‍तूरबा के चार सन्‍तान हुईं जो सभी पुत्र थे। हरीलाल गांधी 1888 में, मणिलाल गांधी 1892 में, रामदास गांधी 1897 में, और देवदास गांधी 1900 में जन्में। पोरबंद से उन्‍होंने मिडिल और राजकोट से हाई स्‍कूल किया। दोनों परीक्षाओं में शैक्षणिक स्‍तर वह एक औसत छात्र रहे। मैट्रि‍क के बाद की परीक्षा उन्‍होंने भावनगर के शामलदास कॉलेज से कुछ परेशानी के साथ उत्तीर्ण की। जब तक वे वहाँ रहे अप्रसन्‍न ही रहे क्‍योंकि उनका परिवार उन्‍हें बैरिस्‍टर बनाना चाहता था।

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विदेश मे शिक्षा व विदेश में ही वकालत


अपने 19वें जन्‍मदिन से लगभग एक महीने पहले ही 4 सितम्‍बर 1888 को गांधी यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्‍दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्‍टर बनने के लिये इंग्‍लैंड चले गए। भारत छोङते समय जैन भिक्षु बेचारजी के समक्ष हिन्‍दूओं को मांस, शराब तथा संकीर्ण विचारधारा को त्‍यागने  के लिए अपनी-अपनी माता जी को दिए गये एक वचन ने उनके शाही राजधानी लंदन में बिताये गये समय को काफी प्रभावित किया।
हालांकि गांधी जी ने अंग्रेजी रीति रिवाजों का अनुभव भी किया जैसे उदाहरण के तौर पर नृत्‍य कक्षाओं में जाने आदि का। फिर भी वह अपनी मकान मालकिन द्वारा मांस एवं पत्ता गोभी को हजम नहीं कर सके। उन्‍होंने कुछ शाकाहारी भोजनलयों की ओर इशारा किया। अपनी माता की इच्‍छाओं के बारे में जो कुछ उन्‍होंने बौद्धिकता से शाकाहारी भोजन का अपना भोजन स्‍वीकार किया। उन्‍होंने शाकाहारी समाज की सदस्‍यता ग्रहण की और इसकी कार्यकारी समिति के लिये उनका चयन भी हो गया जहाँ उन्‍होंने एक स्‍थानीय अध्‍याय की नींव रखी। बाद में उन्‍होंने संस्‍थाएँ गठित करने में महत्‍वपूर्ण अनुभव का परिचय देते हुए इसे श्रेय दिया। वे जिन शाकाहारी लोगों से मिले उनमें कुछ थियोसोफिकल सोसायटी के सदस्‍य भी थे। इस सोसायटी की स्‍थापना 1875 में विश्‍व बन्‍धुत्‍व को प्रबल करने के लिये की गयी थी और इसे बौद्ध धर्म एवं सनातन धर्म के साहित्‍य के अध्‍ययन के लिये समर्पित किया गया था।


उन्‍हें लोगों ने गांधी जी को श्रीमद्धगवद्वीता पढने के लिये प्रेरित किया। हिन्‍दू ईसाई बौद्ध, बौद्ध इस्‍लाम और अन्‍य धर्मो के बारे में पढने से पहले गांधी ने धर्म में विशेष रूचि नहीं दिखाई। इंग्‍लैंड और बेल्‍स बार एसोसिएशन में वापस बुलावे पर वे भारत लौट आये किन्‍तु बम्‍बई में वकालत करने में उन्‍हें कोई खास सफलता नहीं मिली। बाद में एक हाई स्‍कूल शिक्षक के रूप में अंशकालिक नौकरी का प्रार्थना पत्र अस्‍वीकार कर दिये जाने पर उन्‍होंने जरूरतमन्‍दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने के लिये राजकोट को ही अपना स्‍थायी मुकाम बना लिया। परन्‍तु एक अंग्रेज अधिकारी की मूर्खता के कारण उन्‍हें यह कारोबार भी छोङना पङा। अपनी आत्‍मकथा में उन्‍होंने इस घटना का वर्णन अपने बङे भाई की ओर से परोपकार की असफल कोशिश के रूप में किया है। यही वह कारण था जिस वजह से उन्‍होंने सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटाल दक्षिण अफ्रिका में जो उन दिनों ब्रिटिश साम्राज्‍य का भाग होता था, एक वर्ष के करार पर वकालत का कारोबार स्‍वीकार कर लिया।  
महात्‍मा गांधी का प्रारंभिक जीवन महात्‍मा गांधी का प्रारंभिक जीवन Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 30, 2019 Rating: 5

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