मुफ्‍त अनारों की कीमत नहीं समझी


एक समय की बात है। एक शहर में एक धनी आदमी रहता था उसकी लंबी-चौङी खेती-बाङी थी और वह कई तरह के व्‍यापार करता था। बङे विशाल क्षेत्र में उसके बगीचे फैले हुए थे, जहां पर भांति-भांति के फल लगते थे। उसके कई बगीचों में अनार के वृक्ष बहुतायत में थे, जो दक्ष मालियों की देख-रेख में दिन-दुनी रात चौगुनी गति से फल-फूल रहे थे। उस व्‍यक्ति के पास अपार संपदा थीं किंतु उसका ह्रदय संकुचित न होकर इति विशाल था। शिशिर ॠतु आते ही वह अनारों को चांदी के थालों में सजाकर अपने द्धार पर रख दिया करता था। उन थालों पर लिखा होता था आप कम से कम एक तो लें ही लें। मैं आपका स्‍वागत करता हूं। लोग इधर-उधर से देखते हुए निकलते, किंतु कोई भी व्‍यक्ति फल को खाना तो दूर, उन्‍हें हाथ तक नहीं लगाता था। तब उस आदमी ने गंभीरतापूर्वक इस पर विचार किया और किसी निष्‍कर्ष पर पहुंचा। अगली शिशिर ॠतु में उसने अपने घर के द्वार पर उन चांदी के थालों में एक भी अनार नहीं रखा, बल्कि उन थालों पर उसने बङे-बङे अक्षरों में लिखा ‘हमारे पास अन्‍य सभी स्‍थानों से कहीं अच्‍छे अनार मिलेंगे, किंतु उनका मूल्‍य भी दूसरे के अनारों की अपेक्षा अधिक लगेगा। और तब उसने पाया कि न केवल पास-पङोस के, बल्कि दूरस्‍थ स्‍थानों के नागरिक भी उन्‍हें खरीदने के लिए टूट पङे। कथा का संकेत यह है कि भावना से दी जाने वाली अच्‍छी वस्‍तुओं को हेय दृष्टि से देखने की मानसिकता गलत है। सभी सस्‍ती या नि:शुल्‍क वस्‍तुएं या सेवाएं निकृष्‍ट नहीं होती।


वस्‍तुत: आवश्‍यकता वह दृष्टि विकसित करने की है, जो भावना और व्‍यापार में फर्क कर सके और वस्‍तुओं की गुणवत्ता का ठीक-ठाक निर्धारण कर सके। पूर्वाग्रहों के चलते किसी वस्‍तु को बिना देखे-परखे नकारना नहीं चाहिए।


उत्तम विचार – हरेक के जीवन में कठिन दौर आता है। यह आप पर निर्भर है कि उसे किस रूप में लेते हैं।
मुफ्‍त अनारों की कीमत नहीं समझी मुफ्‍त अनारों की कीमत नहीं समझी Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 24, 2019 Rating: 5

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