नौरोजी ने सिखाया पाठ अपना काम अपने हाथ

महान स्‍वतंत्रता सेनानी दादाभाई नौरोजी विख्‍यात वकील थ्‍ज्ञे। मुकदमों के सिलसिले में उन्‍हें कई बार विदेश जाना पङता था। ऐसे ही एक बार उन्‍हें किसी मुकदमे के लिए लंदन जाना पङा। उनके साथ लोकमान्‍य बाल गंगाधर तिलक भी थे। उन दिनों भी लंदन में टहरने का खर्च बहुत होता था। इसलिए वे कम व्‍यय के विचार से एक गांव में ही ठहर गए।

दादाभाई नौरोजी का नियम था कि वे प्रात:काल जल्‍दी उठकर अपना पूरा काम स्‍वयं करते थे। लंदन में भी उनकी यह दिनचर्या कायम रही। एक दिन सुबह जब वे उठे तो उन्‍हें याद आया कि तिलक अभी सोरहे हैं। जब तक वे उठेंगे, देर हो जाएगी। अत: उनके जूते भी पॉलिश कर दें। उन्‍होंने ज्‍यों ही तिलक के जूते उठाए, तिलक की आंखखुल गई। वे बोले-आप क्‍यों कष्‍ट उठा रहे हैं, क्‍या आज नौकर नहीं आया। दादाभाई नौरोजी ने तिलक को समझाया कि यह गांव हैं यहां चारों तरफ नोकर ही नौकर हैं। यहां नौकरों की कमी नहीं है किंतु यहां के सभी लोग अपना काम स्‍वयं करते हैं। इसलिए हमें भी अपना काम स्‍वयं ही करना चाहिए। नौरोजी की बातें तिलक परगहरा असर कर गई और उस दिन से अपना प्रत्‍येक काम वे स्‍वयं ही करने लगे।


तात्‍पर्य यह है कि अपने छोटे-छोटे कार्यो के लिए भी यदि दूसरों पर निर्भर रहेंगे तो हमें ही कष्‍ट होगा क्‍योंकि दूसरे लोग अपनी सुविधा से हमारा कार्य करते हैं, जबकि हम प्राथमिकता के आधार पर। इसलिए स्‍वयं से संबंधित कार्य यथासंभव स्‍वयं ही करने चाहिए। 
Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 08, 2019 Rating: 5

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