बंद डिबिया में जीवित निकल आया कीङा  

एक राजा को यह अभिमान था कि वही अपने राज्‍य के सभी प्राणियों का भरण-पोषण करता है। लोग विष्‍णु को व्‍यर्थ ही जगत का पालक कहते हें। किसने देखा है भगवान को? प्रत्‍यक्ष सत्‍य तो यही है कि मैं ही अपनी प्रजा को पालता हूं। एक समय की बात है एक योगी उसके राज्‍य में आया और नगर के बाहर ही एक पेङ के नीचे आसन जमाकर बैठ गयां धीरे-धीरे योगी विख्‍यात हो गया और उसके पास लोगों की भीङ लगने लगी। राजा ने यह सब सुना तो वह भी योगी से मिलने पहुंचा। योगी की अलमस्‍ती देख राजा ने पूछा-आपके पास तो कोई पात्र भी नहीं है, आप भोजन कैसे करते होंगे? आपको भोजन कहां से मिलता है? आज से मैं आपके भोजन की व्‍यवस्‍था कर दूंगा। योगी ने पूछा-तुम्‍हारे राज्‍य में कितने कौवे, कुत्‍ते और कीङे हैं? 

राजा ने अनभिज्ञता जाहिर की। तब योगी बोला-जब तुम्‍हें उनकी संख्‍या तक पता नहीं तो तुम उन्‍हें भोजन कैसे भेजते होगे? इसका अर्थ यह है कि उनको भोजन तुम नहीं, भगवान भेजते हैंं राजा ने असंतुष्‍ट होकर कहा-मैं एक डिबिया में एक कीङा बंद करके रखता हूं और कल देखूंगा कि उसे भोजन कौन भेजता है? राजा ने सैनिकों के पहले में कीङे केा डिबियां में बंद करके रख दिया। अगले दिन उसने देखा कि कीङा एक चावल के दाने से उलझा हुआ है, जो डिबिया बंद करते समय राजा के सिर पर लगे तिलक से गिर गया था। तब योगी बोला-देखा सबाक पालनहार भगवान ही है। राजा को यह सत्‍य स्‍वीकार करना पङा।

कथा का निहितार्थ यह है कि हमारे द्वारा संपन्‍न होने वाले समस्‍त परहितकारी कार्यो का कर्ता वहीं है, हम तो सिर्फ माध्‍यम भर हैं। 
Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 09, 2019 Rating: 5

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