किसी समुद्र के तट पर एक टिटहरी रहती थी।
एक दिन उसने दो अंडे दिए। वह अत्यंत स्नेह से उन अंडों की सुरक्षा करती और बांट
जोहती कि कब इनमें से उसके प्यारे-प्यारे बच्चे किकलेंगे? किंतु एक दिन अचानक
समुद्र में तेज लहरें उठीं और दोनों अंडों को बहा ले गई। टिटहरी अंडों के बह जाने
से बहुत दुखी थी, उसने समुद्र को सुखने का निश्चय किया। वह निरंर अपनी चोंच में
धूल के कण भरकर लाती और समुद्र में डाल देती। तभी वहां ॠषि अगस्त्य आए। उन्होंने
टिटहरी को विशाल समुद्र में बार-बार रेत के कण डालते देखकर पूछा-अरे टिटहरी यह तुम
क्या कर रही हो? टिटहरी बोली-इस पापी समुन्द्र को सबक सिखाने के लिए मैं इसे
सुखाने का प्रयास कर रही हूं। इसने मेरे अंडे ले लिए हैं।
अगस्त्य ने कहा-तुम चिंता मत करो। मैं
इस समुद्र को पी जाता हूं ॠषि ने तीन बार अंजूरी में लेकर पूरा समुद्र पी लिया।
इससे टिटहरी के अंडे सुरक्षिर बाहर आ गए। फिर ॠषि ने समुद्र के पानी को खारा बनाकर
उसे त्याग दिया।
कथा आध्यात्मिक गूढार्थ लिए है टिटहरी
आत्मा की प्रतीक है। मन व बुद्वि उसके दो अंडे हैं। अगस्त्य विवेक तथा तीन
आचमन, जिनके द्वारा समुद्र पान किया गया-ज्ञान, कर्म और उपासना हैं। इन तीनों का
स्वामी संसार रूपी सागर से पार हो सकता हैा संसार रूपी सागर में मन व बुद्धि
भ्रमित हो जाते हैं। ज्ञान रूपी ऱेत कणों से आत्मा इस समुद्र को सुखाने का प्रयास
करती है, किंतु सफल नहीं हो पाती। विवेक रूपी ॠषि अगस्त्य ज्ञान, कर्म और उपासना
के माध्यम से ही समुद्र रूपी स्त्रंसार को जीतने में सफल होते हैं।
उत्तम विचार – भय को भगाने के लिए ज्ञान
व विवेक की प्राप्ति ही एकमात्र उपाय है।
समुद्र से सुरक्षित बाहर आ गए टिटहरी के अंडे
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 15, 2019
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