जब वरूण ने अपने पुत्र की कठोर परीक्षा ली


एक बार वरूण के पुत्र भृगु के मन में परमात्‍मा को जानने की अभिलाषा जागृत हुई। उनके पिता वरूण ब्रह्रानिष्‍ठ योगी थे। अत: भृगु ने पिता से ही अपनी जिज्ञासा शांत करने का विचार किया। वे अपने पिता के पास जाकर बोले- ‘भगवान् मैं ब्रह्रा को जानता हूं। आप कृपा कर मुझे ब्रह्रा-तत्‍व समझाइए। ‘वरूण बोले-जिससे सभी का पालन-पोषण होता है, वही ब्रह्रा है। भृगु ने सोचा-अन्‍न ही ब्रह्रा है। अत: उन्‍होंने अन्‍न उपजाया और कई वर्ष तप कर पिता के पास गए और कहा- ‘प्रभु अन्‍न को समझा, लेकिन शांति नहीं मिली। प्रयास करो। तब भृगु ने सोचा-प्राण ही ब्रह्रा है। अत: उन्‍होंने प्राणायाम किया। इससे शरीर तो तेजस्‍वी हो गया किंतु फिर भी शांति प्राप्‍त नहीं हुई।

पुन: वह पिता के पास गए और अपनी जिज्ञासा दोहराई-ब्रह्रा-तत्‍व का रहस्‍य बताइए। पिता ने कहा-तू तप कर। भृगु ने मन को संयम में रखने व पवित्र करने की साधना की किंतु शांति इस बार भी दूर ही रही। इस बार पिता ने कहा- विज्ञान ही ब्रह्रा है। तब भृगु ने निश्‍चय किया कि विज्ञान स्‍वरूप जीवात्‍मा ही ब्रह्रा है। उन्‍होंने निरंतर साधना की। जब इससे भी शांति नहीं मिली, तो फिर पिता के पास गए। जब पिता को विश्‍वास हो गया कि पुत्र ब्रह्रा विद्या के ज्ञान का अधिकारी हो गया है, तब उन्‍होंने भृगु को ब्रह्रातत्‍व का ज्ञान दिया, जिससे भृगु को दिव्‍य आनंद की प्राप्ति हुई।

तैतरीय उपनिषद के इस प्रसंग से प्रेरणा मिलती है कि सच्‍चा गुरू बिना पात्रता का विचार किए किसी शिष्‍य को ज्ञान नहीं देता। ज्ञान प्राप्‍त करने का सच्‍चा अधिकारी वही है, जो निरहंकार भाव से गुरू की आज्ञा का पालन करे।


उत्‍तम विचार – जिनका विश्‍वास डगमगाया हुआ है, जो दृढतापूर्वक निर्णय नहीं कर पाते, वे सदा हानि उठाते हैं। 
जब वरूण ने अपने पुत्र की कठोर परीक्षा ली                         जब वरूण ने अपने पुत्र की कठोर परीक्षा ली Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 22, 2019 Rating: 5

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