हमारे देश के ॠषियों-मुनियों व आद्य
ग्रंथों की शिक्षा है कि मनुष्य अपनी मेहनत से अर्जित कमाई खाए, जिससे जरूरत पङने
पर अतिथि का भी सत्कार योग्य तरीके से किया जा सके। स्वावलंबन के महत्व को
दर्शाती भक्त नामाजी के जीवन की एक घटना है। नामाजी अपनी ईश भक्ति और ख्याति के
बावजूद सादगीपूर्ण जीवन के लिए काफी लोकप्रिय थे। भारतवर्ष में उनके अनगिनत शिष्य
थे। एक बार कुछ संत उनसे मिलने उनके घर पहुंचे। नामाजी ने उन्हें सम्मान से
बिठाया। परस्पर बातचीत आरंभ हो गई। उनकी पत्नी विचार में डूबी थी कि अतिथियों का
सत्कार कैसे करें, क्योंकि सत्कार के लिए घर में कुछ नहीं था। जब कुछ नहीं
सूझा, तो उसने नामाजी को बुलाकर समस्या उनके समक्ष रख दी।
नामाजी बोले-राजा ने जो सिक्का मुझे
पुरस्कार में दिया था, उसे गिरवी रखकर सामान खरीद लाओ। पत्नी ने ऐसा ही किया। इस
विषय में जब राजा को ज्ञात हुआ तो उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मैं स्वयं
मजदूरी करके पुरस्कार का सिक्का महाजन से छुङवा लूंगा। मुझे इस तरह की मदद कदापि
स्वीकार नहीं हैं। भक्तवर का स्वाभिमान भरा उत्तर सुनकर राजा ने उसी समय
नामाजी के घर जाकर उनसे क्षमा मांगी और सदा के लिए उनके शिष्य बन गए।
यह घटना स्वावलंबन और उससे उपजे आत्मविश्वास
की ओर इशारा करती हैं। अपनी मेहनत से अर्जित आय भले कम हो किंतु वह व्यक्ति के
भीतर उस उर्जा का संचार करती है जिससे प्रगति के द्वार उसके लिए खुलते जाते है।
जब नामाजी ने राजा की मदद से किया इनकार
Reviewed by Kahaniduniya.com
on
सितंबर 14, 2019
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं: