महान शिक्षक अकबर बीरबल हिन्दी कहानी : |
आगरा शहर में एक सेठ रहता था जिसका नाम राम लाल किरोड़ीमल वो बहुत ही लालची और कंजूस था। एक दिन उनकी पत्नी ने उनसे कहा कि आप मुझे एक स्वर्ण मुद्राएं दे दीजिये मैं खाने की सामग्री लेने जा रही हूँ। रामलाल ने कहा, अरे भागयवान इतना ज्यादा पैसा सिर्फ खाने पर ही नहीं खर्च करना चाहिये। तभी घर की रसोई में कुछ टूटने की आवाज आई, दोनों घर के अंदर गए तो देखा की उनके बेटे ने घर में घी का घड़ा तोड़ दिया है। रामलाल जी को गुस्सा आ गया और उसको डाँट कर बाहर भगा दिया।
तभी रामलाल की पत्नी ने कहा, आप इसके लिए कोई अच्छा-सा शिक्षक क्यों नहीं ढूंढ लेते वैसे भी ये बहुत शरारती हो गया है, रामलाल ने तुरंत उनकी बात मान ली और अपने दोस्त बीरबल से मिलने उनके घर चले गए। बीरबल से रामलाल ने मिलकर अपने बेटे के लिए अच्छे शिक्षक की फरियाद की तब बीरबल ने उनसे कहा मैं एक बहुत ही अच्छे शिक्षक को जानता हूँ। उनका नाम है विनायक और वो आपके बेटे को अच्छी शिक्षा देंगे।
अगले दिन रामलाल किरोड़ीमल के घर विनायक जी पहुँच गए, रामलाल ने उनसे कहा, मैं आपको गुरू दक्षिणा के रूप में 5 स्वर्ण मुद्राएं दूंगा और साथ ही आप दिन भर हमारे यहाँ ही रहेंगे इसलिए आपको मैं भोजन भी कराऊंगा।
तीन महिने बीत गए, रामलाल का लड़का बहुत ही आज्ञाकारी और नेक बन गया, एक दिन रामलाल की पत्नी ने विनायक जी को उनकी दक्षिणा देने के बारे में कहा, आपने विनायक जी को पिछले तीन महीनें से दक्षिणा नहीं दी देखिए ना हमारा बेटा कितना आज्ञाकारी हो गया हैं, रामलाल ने कहा, कैसे पैसे? उनके भोजन पर जितना खर्चा होता है अगर उसको देखा जाये तो उल्टा विनायक जी को हमें पैसे देने चाहिए।
विनायक जी बीरबल से मिलने गए और सारी बात उनको बता दी। कुछ दिनों बाद बीरबल रामलाल के पास आये। अरे रामलाल जी कैसे है? आपका बेटा कैसा है? रामलाल जी ने सब हाल सुनाया, अब बीरबल ने कहा, आपने विनायक जी को दक्षिणा क्यों नहीं दी? रामलाल ने फिर वहीं बात कही जो अपनी पत्नी से कहा था, बीरबल ने कहा, अच्छा तो मेरे पास एक और शिक्षक है जो आपके बेटे को बेहतर शिक्षा देंगे और किसी प्रकार की कोई दक्षिणा या भोजन भी नहीं करेंगे लेकिन उसके लिए मैं चाहता हूँ की आप विनायक जी के सारे पैसे देकर उनको विदा कीजिये, रामलाल ने ये बात सुनकर फौरन सारी दक्षिणा दे दी, अगले दिन बिरबल गौतम बुद्ध की एक मूर्ति लेकर रामलाल के पास गए, रामलाल ने कहा, अरे यह तो एक मूर्ति है, जी बिलकुल ये दुनिया के सबसे महान शिक्षक की प्रतिमा है जो बिना किसी प्रकार की दक्षिणा के ज्ञान देंगे, अब रामलाल को बात समझ में आ गई और उन्होंने एक बार फिर से विनायक जी को वापस बुला लिया और उनसे क्षमा मांगी।
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