कवि और धनवान व्यक्ति : अकबर-बीरबल कहानियाँ : Akbar-Birbal Stories : Kavi Aur Dhanavan Vyakti |
‘कल शायद अच्छा ईनाम मिलेगा’ ऐसी कल्पना करता हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया। अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में जा पहुंचा। धनवान बोला, ‘‘सुनो कवि महाशय, जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था, उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।’’
कवि बहुत निराश हुआ। उसने अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई। उसके मित्र ने यह सारी बात बीरबल को बताई। यह सुनकर बीरबल बोला, ‘‘अब जैसा मैं कहता हूं वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे अपने घर खाने पर बुलाओ। हां, अपने कवि मित्र को बुलाना मत भूलना। मैं भी वहां आऊंगा।’’
कुछ दिनों बाद बीरबल की योजनानुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को भोज का कार्यक्रम तय हो गया। नियत समय पर वह धनवान भी आ गया। उस समय बीरबल, कवि और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने-पीने का कहीं कोई नामोनिशान नहीं था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे। धनवान की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, ‘‘भोजन का समय तो कब का हो चुका ? क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं ?’’ ‘‘खाना, कैसा खाना?’’ बीरबल ने पूछा।
धनवान को अब गुस्सा आ गया, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुमने मुझे यहां खाने पर नहीं बुलाया है ?’’ खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।’’ जवाब बीरबल ने दिया। धनवान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, ‘‘यह सब क्या है? इस तरह किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना सही नहीं, तुमने मुझे धोखा दिया है।’’
अब बीरबल हंसता हुआ बोला, ‘‘यदि मैं कहंू कि इसमें कुछ भी गलत नही ंतो.....। तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा किया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।’’
धनवान को अब अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली। वहां मौजूद सभी बीरबल को प्रशंसा भरी नजरों से देखने लगे।
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