श्रीकृष्ण मणि Shreekrshn Mani

श्रीकृष्ण मणि shreekrshn mani

एक बार भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी के साथ हस्तिनापुर गए। उनके हस्तिनापुर चले जाने के बाद अक्रूर और कृतवर्मा ने शतधन्वा को स्यमंत कमणि छीनने के लिए उकसाया। शतधन्वा बड़े दृष्ट और पापी स्वभाव का मनुष्य था। 
अक्रूर और कृतवर्मा के बहकाने पर उसने लोभवश सोए हुए सत्राजित को मौत के घाट उतार दिया और मणि लेकर वहाँ से चला गया। शतधन्वा द्वारा अपने पिता के मारे जाने का समाचार सुनकर सत्यभामा शोकाकुल होकर रोने लगी। 

फिर भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण कर उसने यह प्रतिज्ञा की कि जब तक श्रीकृष्ण शतधन्वा का वध नहीं कर देंते, वह अपने पिता का दाह-संस्कार नहीं होने देगी। इसके बाद उसने हस्तिनापुर जाकर श्रीकृष्ण को सारी घटना से अवगत कराया। वे उसी समय सत्यभामा और बलराम जी के साथ हस्तिनापुर से द्वारिका लौट आए। 

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द्वारिका पहुँचकर उन्होंने शतधन्वा को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। जब शतधन्वा को ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण ने उसे बंदी बनाने का आदेश दे दिया है तो वह भयभीत होकर कृतवर्मा और अक्रूर के पास गया और उनसे सहायता की प्रार्थना की। किंतु उन्होंने सहायता करने से इंकार कर दिया। तब उसने स्यमंत कमणि अक्रूर को सौंप दी और अश्व पर सवार होकर द्वारिका से भाग निकला। 

श्रीकृष्ण और बलराम को उसके भागने की सूचना मिल चुकी थी। अतः उसका वध करने के लिए वे रथ पर सवार होकर उसका पीछा करने लगे। उन्हें पीछे आता देख शतधन्वा भयभीत होकर अश्व से कूद गया और पैदल ही घने वन की और दौड़ने लगा। तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार दुष्ट शतधन्वा का वध कर उन्होंने सत्यभामा की प्रतिज्ञा पूर्ण की। 

शतधन्वा की मृत्यु का समाचार सुनकर कृतवर्मा और अक्रूर भयभीत होकर अपने परिवारों सहित द्वारिका से चले गए। श्रीकृष्ण अक्रूर से बड़ा प्रेम करते थे। जब उन्हें अक्रूर के द्वारिका से जाने का समाचार मिला तो वे अत्यंत दुःखी हो गए। उन्होंने उसी क्षण सैनिकों को आज्ञा दी ि कवे अक्रूर जी को ससम्मान द्वारिका वापस ले आए। 

शीघ्र ही अक्रूर को ससम्मान द्वारिका लाया गया। उनका अतिथि-सत्कार करने के बाद श्रीकृष्ण प्रेम भरे स्वर में बोले-‘‘चाचाश्री! मैं पहले से ही जानता था कि शतधन्वा स्यंमतक मणि आपके पास छोड़ गया है, किंतु हमें उसकी आवश्यकता नहीं है। आप बड़े धर्मात्मा और दानी हैं, इसलिए उसे आप अपने ही पास रखें।‘‘ 

डनकी बात सुनकर अक्रूर की आँखों से आँसू बह निकले। वे अपने अपराध की क्षमा माँगते हुए बोले-‘‘दयानिधान! आप परम दयालु और भक्त-वत्सल हैं। मैं आपकी शरण में हूँ। आप मेरे अपराध को क्षमा करें।‘‘

यह कहकर उन्होंने मणि उन्हें सौप दी। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गले से लगा लिया और वह मणि वापस उन्हें लौटा दी। अक्रूरजी ने तभी ये प्रण किया कि वे अब लालच से हमेशा दूर रहेंगे, क्योंकि लालच बूरी बला होती है।

श्रीकृष्ण मणि Shreekrshn Mani श्रीकृष्ण मणि  Shreekrshn Mani Reviewed by Kahaniduniya.com on दिसंबर 14, 2019 Rating: 5

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