हनुमान कथा Hanumaan Katha
हनुमान जी का जन्म त्रेता युग में अंजना (एक नारी वानर) के पुत्र के रूप में हुआ था। अंजना असल में पुन्जिकस्थला नाम की एक अप्सरा थीं, मगर एक शाप के कारण उन्हें नारी वानर के रूप में धरती पर जन्म लेना पड़ा। उस शाप का प्रभाव शिव के अन्श को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था। अंजना केसरी की पत्नी थीं। केसरी एक शक्तिशाली वानर थे जिन्होंने एक बार एक भंयकर हाथी का मारा था। उस हाथी ने कई बार असहाय साधु-संतों को विभिन्न प्रकार से कष्ट पहुंचाया था। तभी से उनका नाम केसरी पड गया, ‘‘केसरी‘‘ का अर्थ होता है सिंह। उन्हें ‘‘कुंजर सुदान‘‘ (हाथी को मारने वाला) के नाम से भी जाना जाता है। संक्षिप्त हनुमान कथा
केसरी के संग में अंजना ने भगवान शिव कि बहुत कठोर तपस्या की जिसके फलस्वरूप अंजना ने हनुमान (शिव के अन्श) को जन्म दिया।
जिस समय अंजना शिव की आराधना कर रहीं थीं उसी समय अयोध्या-नरेश दशरथ, पुत्र प्राप्ति के लिये पुत्र कामना यज्ञ करवा रहे थे। फलस्वरूप उन्हें एक दिव्य फल प्राप्त हुआ जिसे उनकी रानियों ने बराबर हिस्सों में बाँटकर ग्रहण किया। इसी के फलस्वरूप उन्हें राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुधन पुत्र रूप में प्राप्त हुए।
विधि का विधान ही कहेंगे कि उस दिव्य फल का छोटा सा टुकड़ा एक चील काट के ले गई और उसी वन के ऊपर से उड़ते हुए (जहाँ अंजना और केसरी तपस्या कर रहे थे) चील के मुंह से वो टुकड़ा नीचे गिर गया। उस टुकड़े को पवन देव ने अपने प्रभाव से याचक बनी हुई अंजना के हाथों में गिरा दिया। ईश्वर का वरदान समझ कर अंजना ने उसे ग्रहण कर लिया जिसके फलस्वरूप उन्होंने पुत्र के रूप में हनुमान को जन्म दिया।
अंजना के पुत्र होने के कारण ही हनुमान जी को अंजनेय नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है ‘अंजना द्वारा उत्पन्न‘।
हनुमान कथा Hanumaan Katha
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दिसंबर 16, 2019
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