महाभारत युद्ध की समाप्ति

महाभारत युद्ध की समाप्ति 

दुर्योधन की प्राय सारी सेना युद्ध में मारी गयी थी। अन्ततोगत्वा उसका भीमसेन के साथ युद्ध हुआ। उसने पांडव-पक्ष के पैदल आदि बहुत से सैनिकों का वध करके भीमसेन पर धावा किया। उस समय गदा से प्रहार करते हुए दुर्योधन के अन्य छोटे भाई भी भीमसेन के ही हाथ से मारे गये अपने राजा दुर्योधन की की ऐसी दशा देखकर और अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का स्मरण कर अश्वत्थामा अधीर हो गया। छुप क रवह पांडवों के शिविर में पहुँचा और घोर कालरात्रि में कृपाचार्य तथा कृतवर्मा की सहायता से पांडवों के बचे हुये वीर महारथियों को मार डाला। केवल यही नहीं, उसने पांडवों के पाँचों पुत्रों के सिर भी अश्वत्थामा ने काट डाले। अश्वत्थामा के इस कुकर्म की सभी ने निंदा की यहाँ तक कि दुर्योधन तक को भी यह अच्छा नहीं लगा। पुत्रों के हत्या से दुखी द्रौपदी विलाप करने लगी। उसके विलाप को सुन कर अर्जुन ने उस नीच कर्म हत्यारे ब्राह्मण के सिर को काट डालने की प्रतिज्ञा की। अर्जुन की प्रतिज्ञा सुन अश्वत्थामा भाग निकला। श्रीकृष्णको सारथी बनाकर एवं अपना गांडीव धनुष लेकर अर्जुन ने उसका पीछा किया। अश्वत्थामा को कहीं भी सुरक्षा नहीं मिली तो भय के कारण उसने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। अश्वत्थामा ब्रह्मस्त्र को चलाना तो जानता था पर उसे लौटाना नहीं जानता था। 

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उस अति प्रचण्ड तेजोमय अग्नि को अपनी ओर आता देख अर्जुन ने श्रीकृष्ण से विनती की, ‘‘हे जनार्दन आप ही इस त्रिगुणमयी श्रृष्टि को रचने वाले परमेश्वर हैं। श्रृष्टि के आदि और अंत में आप ही शेष रहते हैं। आप ही अपने भक्तजनों की रक्षा के लिये अवतार ग्रहण करते हैं। आप ही ब्रह्मास्वरूप हो रचना करते हैं, आप ही विष्णु स्वरूप् हो पालन करते हैं और आप ही रूद्रस्वरूप हो संहार करते हैं। आप ही बताइये कि यह प्रचण्ड अग्नि मेरी ओर कहाँ से आ रही है और इससे मेरी रक्षा कैसे होगी?‘‘ श्रीकृष्ण बोले, ‘‘हे अर्जुन तुम्हारे भय से व्याकुल होकर अश्वत्थामा ने यह ब्रह्मास्त्र तुम पर छोड़ा है। इससे बचने के लिये तुम्हें भी अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना होगा क्योंकि अन्य किसी अस्त्र से इसका निवारण नहीं हो सकता।‘‘ श्रीकृष्ण की इस मंत्रणा को सुनकर महारथी अर्जुन ने भी तत्काल आचमन करके अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। दोनों ब्रह्मास्त्र परस्पर भिड़ गये और प्रचण्ड अग्नि उत्पन्न होकर तीनों लोको को तप्त करने लगी। इस विनाश को देखकर अर्जुन ने दोंनो ब्रह्मास्त्र लौटाकर शांत कर दिया और झपट कर अश्वत्थामा को पकड़ कर बाँध लिया। श्रीकृष्ण बोले, ‘‘हे अर्जुन धर्मात्मा, सोये हुये, असावधान, मतवाले, पागल, अज्ञानी, रथहीन, स्त्री तथा बालक को मारना धर्म के अनुसार है, सोये हुये निरपराध बालकों की हत्या ही है। जीवित रहेगा तो पुनः पाप करेगा। अत तत्काल इसका वध करके और इसका कटा हुआ सिर द्रौपदी के सामने रख कर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो।‘‘ श्रीकृष्ण के इन शब्दों को सुनने के बाद भी धीरवान अर्जुन को गुरूपुत्र पर दया ही आई और उन्होंने अश्वत्थामा को जीवित ही शिविर में ले जाकर द्रौपदी के सामने उपस्थित किया। पशु की तरह बँधे हुये गुरूपुत्र को देख कर ममतामयी द्रौपदी का कोमल हृदय पिघल गया। 

उसने गुरूपुत्र को नमस्कार किया और उसे बन्धनमुक्त करने के लिये अर्जुन से कहा, इनके वध करने से मेरे मृत पुत्र लौट कर तो नहीं आ सकते अतः आप इन्हें मुक्त कर दीजिये।‘‘ द्रौपदी के इन न्याय तथा धर्मयुक्त वचनों को सुनकर सभी ने उसकी प्रशंसा की किन्तु भीम को क्रोध शांत नहीं हुआ। अर्जुन ने अपनी तलवार से अश्वत्थामा के सिर के केश काट डाले और उसके मस्तक की मणि निकाली ली। मणि निकल जाने से वह श्रीहीन हो गया। श्रीहीन तो वह उसी क्षण हो गया था जब उसने बालकों की हत्या की थी किन्तु केश मुंड जाने और मणि निकल जाने से वह और भी श्रीहीन हो गया और उसका सिर झुक गया। अर्जुन ने उसे उसी अपमानित अवस्था में शिविर से बाहर निकाल दिया। अश्वत्थामा को अपमानित कर शिविर से निकाल देने के पश्चात सारे पांडव अपने स्वजनों को जलदान करने के निमित्त धृतराष्ट्र तथा श्रीकृष्णचन्द्र को आगे कर के अपने वंश की सम्पूर्ण स्त्रियों के साथ गंगा तट पर गये, उसी समय एक अपूर्व घटना हुई, उन्होंने देखा कि उनकी वधू उत्तरा ने व्याकुल स्वर में कहा कि मुझे बचाओ मुझे बचाओ मेरी रक्षा करोआप योग-योगेश्वर हैं, देवताओं के भी देवता हैं, संसार की रक्षा करने वाले हैं, आप सर्व शक्तिमान हैं, यह देखिये प्रज्ज्वलित लोहे का बाण मेरे गर्भ को नष्ट न कर दे, है प्रभो आप की मेरी रक्षा करने में समर्थ हैं, ऐसे कातर वचन सुन कर श्रीकृष्ण तुरन्त रथ से कूद पड़े और बोले कि अश्वत्थामा ने पांडव वंश करने के लिए फिर से ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया है, जिससे उत्तरा का गर्भ अत्यन्त जलने लगा, परन्तु श्रीकृष्ण ने अपने तप से शिशु को पुनर्जिवित कर दिया।       

महाभारत युद्ध की समाप्ति महाभारत युद्ध की समाप्ति Reviewed by Kahaniduniya.com on नवंबर 29, 2019 Rating: 5

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