अठारहवीं पुतली तारामती की कहानी भाग - 19



अठारहवीं पुतली तारामती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्‍य की गुणग्राहिता का कोई जवाब नहीं था। वे विद्वानों तथा कलाकारों को बहुत सम्‍मान देते थे। उनके दरबार में एक से बढकर एक विद्वान तथा कलाकार मौजूद थे, फिर भी अन्‍य राज्‍यों से भी योग्‍य व्‍यक्ति आकर उनसे अपनी योग्‍यता के अनुरूप आदर और पारितोषिक प्राप्‍त करते थे। एक दिन विक्रम के दरबार में दक्षिण भारत के किसी राज्‍य से एक विद्वान आशय था कि विश्‍वासघात विश्‍व का सबसे नीच कर्म है। उसने राजा को अपना विचार स्‍पष्‍ट करने के लिए एक कथा सुनाई। उसने कहा- आर्याव मे बहुत समय पहले एक राजा था। उसका भरा-पूरा परिवार था, फिर भी सत्तर वर्ष की आयु में उसने एक रूपवती कन्‍या से विवाह किया। वह नई रानी के रूप पर इतना मोहित हो गया कि उससे एक पल भी अलग होने का उसका मन नहीं करता था।



वह चाहता था कि हर वक्‍त उसका चेहरा उसके सामने रहे। वह नई रानी को दरबार में भी अपने बगल में बिठाने लगा। उसके सामने कोई भी कुछ बोलने का साहस नहीं करता, मगर उसके पीठ पीछे सब उसका उपहास करते। राजा के महामंत्री को यह बात बूरी लगी। उसने एकांत में राजा से कहा कि सब उसकी इस की आलोचना करते हैं। अगर वह हर पल नई रानी का चेहरा देखता रहना चाहता है तो उसकी अच्‍छी-सी तस्‍वीर बनवाकर राजसिंहासन के सामने रखवा दे। चूँकि इस राज्‍य में राजा के अकेले बैठने की परम्‍परा रही है, इसलिए उसका रानी को दरबार मे अपने साथ लाना अशोभनीय है। महामंत्री राजा का युवाकाल से ही मित्र जैसा था और राजा उसकी हर बात को गंभीरतापूर्वक लेता था। उसने महामंत्री से किसी अच्‍छे चित्रकार को छोटी रानी के चित्र को बनाने का काम सौंपने को कहा। महामंत्री ने एक बङे ही योग्‍य चित्रकार को बुलाया। चित्रकार ने रानी का चित्र बनाना शुरू कर दिया। जब चित्र बनकर राजदरबार आया, तो हर कोई चित्रकार का प्रशसंक हो गया। बारीक से बारीक चीज को भी चित्रकार ने उस चित्र में उतार दिया था। चित्र ऐसा जीवंत था मानो छोटी रानी किसी भी क्षण बोल पङेगी। राजा को भी चित्र बहुत पसंद आया। तभी उसकी नजर चित्रकार द्वारा बनाई गई रानी की जंघा पर गई, जिस पर चित्रकार ने बङी सफाई से एक तिल दिखा दिया था। राजा को शंका हुई कि रानी के गुप्‍त अंग भी चित्रकार ने देखे हैं और क्रोधित होकर उसने चित्रकार से सच्‍चाई बताने को कहा।

चित्रकार ने पूरी शालीनता से उसे विश्‍वास दिलाने की कोशिश की प्रकृति ने उसे सूक्ष्‍म दृष्टि दी है जिससे उसे छिपी हुई बात भी पता चल जाती है। तिल उसी का एक प्रमाण है और उसने तिल को खूबसूरत बढाने के लिए दिखाने की कोशिश की है। राजा को उसकी बात का जरा भी विश्‍वास नहीं हुआ। उसने जल्‍लादों को बुलाकर तत्‍काल घने जंगल में जाकर उसकी गर्दन उङा देने का हुक्‍म दिया तथा कहाकि उसकी आँखें निकालकर दरबार मे उसके सामने पेश करें। महामंत्री को पता था कि चित्रकार की बातें सच हैं। उसने रास्‍ते में उन जल्‍लादों को धन का लोभ देकर चित्रकार को मुक्‍त करवा लिया तथा उन्‍हें किसी हिरण को मारकर उसकी आँखे निकाल लेने को कहा ताकि राजा को विश्‍वास हो जाए कि कलाकार को खत्‍म कर दिया गया है। चित्रकार को लेकर महामंत्री अपने भवन ले आया तथा चित्रकार वेश बदलकर उसी के साथ रहने लगा। कुछ दिनों बाद राजा का पुत्र शिकार खेलने गया, तो एक शेर उसके पीछे पङ गया। राजकुमार जान बचाने के लिए एक पेङ पर चढ गया। तभी उसकी नजर पेङ पर पहले से मौजूद एक भालू पर पङी। भालू से जब वह भयभीत हुआ तो भालू ने उससे निश्चित रहने को कहा। भालू ने कहा कि वह भी उसी की तरह शेर से डरकर पेङ पर चढा हुआ है और शेर के जाने की प्रतीक्षा कर रहा है। शेर भूखा था ओर उन दोनों पर आँख जमाकर उस पेङ के नीचे बैठा था। राजकुमार को बैठे-बैठे नींद आने लगी और जगे रहना उसे मुश्किल दिख रहा था भालू ने उसे अपनी ओर बुला लिया और एक घनी शाखा पर कुछ देर सो लेने को कहा। भालू ने कहा कि जब वह सोकर उठ जाएगा तो वह जागकर रखवाली करेगा और भालू सोएगा जब राजकुमार सो गया तो शेर ने भालू को फुसलाने की कोशिश की। उसने कहा कि वह और भालू वन्‍य प्राणी हैं, इसलिए दोनों को एक दूसरे का भला सोचना चाहिए। मनुष्‍य कभी भी वन्‍य प्राणियों का दोस्‍त नहीं हो सकता।

उसने भालू से राजकुमार को गिरा देने को कहा जिससे कि वह उसे अपना ग्रास बना सके। मगर भालू ने उसकी बात नहीं मानी तथा कहा कि वह विश्‍वासघात नहीं कर सकता। शेर मन मसोसकर रह गया। चार घंटों की नींद पूरी करने के बाद जब राजकुमार जागा, तो भालू की बारी आई और वह सो गया। शेर ने अब राजकुमार को फुसलाने की कोशिश की। उसने काह कि क्‍यों वह भालू के लिए दुख भोग रहा है। वह अगर भालू को गिरा देता हो तो शेर की भूख मिट जाएगी और वह आराम से राजमहल लौट जाएगा। राजकुमार उसकी बातों में आ गया। उसने धक्‍का देकर भालू को गिराने की कोशिश की। मगर भालू न जाने कैसे जाग गया और राजकुमार को विश्‍वासघाती कहकर खूब धिक्‍कारा। राजकुमार की अन्‍तरात्‍मा ने उसे इतना कोसा कि वह गूंगा हो गया। जब शेर भूख के मारे जंगल में अन्‍य शिकार की खोज में निकल गया तोवह राजमहल पहुँचा। किसी को भी उसके गूंगा होने की बात समझ में नहीं आई। कई बङे वैद्य आए, मगर राजकुमार का रोग किसी की समझ में नहीं आया। आखिरकार महामंत्री के घर छिपा हुआ वह कलाकार वैद्य का रूप ध्रकर राजकुमार के पास आया। उसने गूंगे राजकुमार के चेहरे का भाव पढकर सब कुछ जान लिया। उसने राजकुमार को संकेत की भाषा में पूछा कि क्‍या आत्‍मग्‍लानि से पी्ङित होकर वह अपनी वाणी खो चुका है, तो राजकुमार फूट-फूट कर रो पङा।

रोने से उसपर मनोवैज्ञानिक असर पङा और उसकी खोई हुई वाणी लौट आई। राजा को बङा आश्‍चर्य हुआ कि उसने राजकुमार के चेहरे को देखकर सच्‍चाई कैसे जान ली। तो चित्रकार ने जवाब दिया कि जिस तरह कलाकार ने उनकी रानी की जाँघ का तिल देख लिया था। राजा तुरन्‍त समझ गया कि वह वही कलाकार था जिसके वध की उसने आज्ञा-दी थी। वह चित्रकार से अपनी भूल की माफी माँगने लगा तथा ढेर सारे इनाम देकर उसे सम्‍मानित किया।

उस दक्षिण के विद्वान की कथा से विक्रमादित्‍य बहुत प्रसन्‍न्‍ हुए तथा उसके पाण्डियां का सम्‍मान करते हुए उन्‍होंने उसे एक लाख स्‍वर्ण मुद्राएं दी। 
अठारहवीं पुतली तारामती की कहानी भाग - 19 अठारहवीं पुतली  तारामती की कहानी  भाग - 19 Reviewed by Kahaniduniya.com on नवंबर 01, 2019 Rating: 5

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