दसवीं पुतली प्रभावती की कहानी भाग – 11



दसवें दिन फिर राजा भोज उस दिव्‍य सिंहासन पर बैठने के लिए उद्यत हुए लेकिन पिछले दिनों की तरह इस बार दवसीं पुतली प्रभावती जाग्रत हो गई और बोली, रूको राजन् क्‍या तुम स्‍वयं को विक्रमादित्‍य के समान समझने लगे हो? पहले उनकी तरह पराक्रमी और दयालु होकर बताओ तब ही इस सिंहासन पर बैठने के अधिकारी होंगे। सुनो, मैं तुम्‍हें परम प्रतापी राजा विक्रमादित्‍य की कथा सुनाती हूं-
एक बार राजा विक्रमादित्‍य शिकार खेलते-खेलते अपने सैनिको की टोली से काफी आगे निकलकर जंगल में भटक गए। उन्‍होंने इधर-उधर काफी खोजा, पर उनके सैनिक उन्‍हें नजर नहीं आए। उसी समय उन्‍होंने देखा कि एक सुदर्शन युवक ऐ पेङ पर चढा और एक शाखा से उसने एक रस्‍सी बांधी। रस्‍सी में फंदा बना था उस फन्‍दे में अपना सर डालकर झूल गया।
विक्रम समझ गए कि युवक आत्‍महत्‍या कर रहा है। उन्‍होंने युवक को नीचे से सहारा देकर फंदा उसके गले से निकाला तथा उसे समझाया कि आत्‍महत्‍या कायरता है और अपराध भी है। इस अपराध के लिए राजा होने के नाते वे उसे दण्डित भी कर सकते हैं। युवक उनक रोबीली आवाज तथा वेशभूषा से ही समझ गया कि वे राजा है, इसलिए भयभीत हो गया।

राजा ने उसे सहलाते हुए कहा कि वह एक स्‍वस्‍थ और बलशाली युवक है फिर जीवन से निराश क्‍यों हो गया। अपनी मेहनत के बल पर वह आजीविका की तलाश कर सकता है। उस युवक ने उन्‍हें बताया कि उसकी निराशा का कारण जीविकोपार्जन नहीं है और वह विपन्‍नता से निराश होकर आत्‍महत्‍या का प्रयास नहीं कर रहा था।



राजा ने जानना चाहा कि कौन सी ऐसी विवशता है जो उसे आत्‍महत्‍या के लिए प्रेरित कर रही है। उसने बताया कि वह कालिंगा का रहने वाला है तथा उसका नाम वसु है। ए‍क दिन वह जंगल से गुजर रहा था कि उसकी नजर एक सुन्‍दर लङकी पर पङी। वह उसके रूप पर इतना मोहित हुआ कि उसने उससे उसी समय प्रणय निवेदन कर डाला।

उसके प्रस्‍ताव पर लङकी हं पङी और उसने उसे बताया कि वह किसी से प्रेम नहीं कर सकती क्‍योंकि उसके भाग्‍य में प्रेम करना नहीं लिखा है। दरअसल वह क राजकुमारी है जिसका जन्‍म ऐसे नक्षत्र मे हुआ कि उसका पिता ही उसे कभी नहीं देख सकता अगर उसके पिता ने उसे देखा, तो तत्‍क्षण उसकी मृत्‍यु हो जाएगी।
इसलिए उसके जन्‍म लेते ही उसके पिता ने नगर से दूर एक सन्‍यासी की कुटिया में भेज दिया और उसका पालन पोषण उसी कुटिया में हुआ। उसका विवाह भी उसी युवक से संभव है जो असंभव को संभव करके दिखा दे। उस युवक को जिसे मुझसे शादी करनी है खौलते तेल के कङाह में कूदकर जिन्‍दा निकलकर दिखाना होगा।

उसकी बात सुनकर वसु उस कुटिया में गया जहां उसके निवास था। वहां जाने पर उसने कई अस्थि पंजर देखे जो उस राजकुमारी से विवाह के प्रयास में खौलते कङाह के तेल में कूदकर अपनी जानों से हाथ धो बैठे थे।

वसु की हिम्‍मत जवाब दे गई। वह निराश होकर वहां से लौट गया। उसने उसे भुलाने की लाख कोशिश की, पर उसका रूप सोते-जागते, उठते-बैठते हर समय आंखों के सामने आ जाता है। उसकी नींद उङ गई। उसे खाना-पीना नहीं अच्‍छा लगता। अब प्राणान्‍त्‍ कर लेने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं बचा।
विक्रम ने उसे समझाया चाहा कि उस राजकुमारी को पाना सचमुच असंभव है, इसलिए वह उसे भूलकर किसी और को जीवन संगिनी बना ले, लेकिन युवक नहीं माना। उसने कहा कि विक्रम ने उसे व्‍यर्थ ही बचाया। उन्‍होंने उसे मर जाने दिया होता, तो अच्‍छा होता।

विक्रम ने कहा कि आत्‍महत्‍या पाप है, और यह पाप अपने सामने वह नहीं होता देख सकते। उन्‍होंने उसे वचन दिया कि वे राजकुमारी से उसका विवाह कराने का हर सम्‍भव प्रयास करेंगे। फिर उन्‍होंने मां काली द्वारा प्रदत्त दोनों बेतालों का स्‍मरण किया।

दोनों बेताल पलक झपकते ही उपस्थित हुए तथा कुछ ही देर में उन दोनों को लेकर उस कुटिया में आए जहां राजकुमारी रहती थी। वह बस कहने को कुटिया थी। राजकुमारी की सारी सुविधाओं का ख्‍याल रखा गया था। नौकर-चाकर थे। राजकुमारी का मन लगाने के लिए सखी-सहेलियां थीं। तपस्‍वी से मिलकर विक्रमादित्‍य ने वसु के‍ लिए राजकुमारी का हाथ मांगा। तपस्‍वी ने राजा विक्रमादित्‍य का परिचय पाकर कहा कि अपने प्राण वह राजा को सरलता से अर्पित कर सकता है, पर राजकुमारी का हाथ उसी युवक को देगा जो खौलते तेल से सकुशल निकल आए। बस यह शर्त पूरी होनी चाहिए।

राजा विक्रम ने उसे बताया कि वे खुद ही इस युवक के स्‍थान पर कङाह में कूदने को तैयार हैं तो तपस्‍वी का मुंह विस्‍मय से खुला रहा गया। तभी राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ वहां आई। वह सचमुच अप्‍सराओं से भी ज्‍यादा सुन्‍दर थी।

खैर विक्रम ने तपस्‍वी से कहकर कङाह भर तेल की व्‍यवस्‍था करवाई। जब ते एकदम खौलने लगा, तो मां काली को स्‍मरण कर विक्रम तेल में कूद गए। खौलते तेल में कूदते ही उनके प्राण निकल गए और शरीर भुनकर स्‍याह हो गया। मां काली अपने भक्‍त को इस तरह कैसे मरने देती। उन्‍होंने बेतालों को विक्रम को जीवित करने की आज्ञा दी।

बेतालों ने अमृत की बून्‍दें उनके मुंह में डालकर उन्‍हें जिंदा कर दिया। जीवित होते ही उन्‍होंने वसु के लिए राजकुमारी का हाथ मांगा। राजकमारी के पिता को खबर भेज दी गई और दोनों का विवाह धूम-धाम से सम्‍पन्‍न हुआ।

इतना कहकर प्रभावती खामोश हो गई। राजा भोज समझ गए कि विक्रम के अस अतुलनीय त्‍याग को उनके पास कोई जवाब नहीं है। और लौट गए अपने कक्ष की तरफ। अगले दिन 11वीं पुतली त्रिलोचना ने रोका राजा को और सुनाई विक्रमादित्‍य की सुंदर व रोचक कथा। 
दसवीं पुतली प्रभावती की कहानी भाग – 11 दसवीं पुतली प्रभावती की कहानी  भाग – 11 Reviewed by Kahaniduniya.com on अक्तूबर 29, 2019 Rating: 5

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