आठवीं पुतली पुष्‍पवती की कहानी भााग - 09



आठवें दिन राजा भोन पुन: राजदरबार में सिंहासन पर बैठने के लिए पहुंचे। तभी में से एक आठवीं पुतली पुष्‍पवती जाग्रत हो गई और बोली, ‘ठहरो राजन् अभी तुम इस सिंहासन पर बैठने के योग्‍य नहीं हुए हो।

अगर तुम मानते हो कि तुम भी राजा विक्रमादित्‍य की तरह महान हो तो अवश्‍य बैठ सकते हो पर पहले अपना आत्‍ममूल्‍यांकन करो। सुनो, मैं तुम्‍हें राजा विक्रमादित्‍य की कहानी सुनाती हूं-
एक दिन राजा विक्रमादित्‍य के दरबार में एक बढई आया। उसने राजा को काठ का एक घोङा दिखाया और कहा कि यह न कुछ खाता है, न पीता है और जहां चाहो वहां ले जाता है। राजा ने उसी समय दीवान को बुलाकर एक लाख रूपया उसे देने को कहा।,

दीवान बोला, ‘यह तो काठ का है और इतने दाम का नहीं है।‘ राजा ने गुस्‍से से कहा, ‘दो लाख रूपए दो।’

दीवान चुप रह गया। रूपए दे दिए। रूपए लेकर बढई चलता बना, पर चलते चलते कह गया कि इस घोङे में ऐङ लगाना कोङा मत मारना।

एक दिन राजा ने उस पर सवारी की। पर वह बढर्इ की बात भूल गए और घोङे पर कोङा जमा दिया। कोङा लगना था कि घोङा हवा से बातें करने लगा और समुद्र पार ले जाकर उसे जंगल में एक पेङ पर गिरा दिया। लुढकते हुए राजा नीचे गिरे।



संभलने पर उठे और चलते-चलते एक ऐसे बीहङ वन में पहुंचे कि निकलना मुश्किल हो गया। जैसे-तैसे वह वहां से निकले। दस दिन में सात कोस चलकर वह ऐसे घने जंगल में पहुंचे, जहां हाथ तक नहीं सूझता था। चारों तरफ शेर-चीते दहाङते थे। राजा घबराए। रास्‍ता नहीं सूझता था। आखिर पंद्रह दिन भटकने के बाद एक ऐसी जगह पहुंचे जहां एक मकान था। उसके बाहर एक ऊंचा पेङ और दो कुएं थे। पेङ पर एक बंदरिया थी। वह कभी नीचे आती तो कभी ऊपर चढती।

राजा पेङ पर चढ गए और छिपकर सब हाल देखने लगे। दोपहर होने पर एक यती वहां आया। उसने बाई तरफ के कुएं से एक चुल्‍लू पानी लिया और उस बंदरिया पर छिङक दिया। वह तुरन्‍त एक बङी सुन्‍दर स्‍त्री बन गई। यती पहरभर उसके साथ रहा, फिर दूसरे कुएं से पानी खींचकर उस पर डाला कि वह फिर बंदरिया बन गई। वह पेङ पर जा चढी और यती गुफा में चला गया।

राजा को यह देखकर बङा अचंभा हुआ। यती के जाने पर उसने भी ऐसा ही किया। पानी पङते ही बंदरिया सुन्‍दर स्‍त्री बन गई। राजा ने जब प्रेम से उसकी और देखा तो वह बोली, ‘हमारी तरफ ऐसे मत देखो। हम तपस्‍वी है। शाप दे देंगे तो तुम भस्‍म हो जाओगे।’ राजा बोला, ‘मेरा नाम विक्रमादित्‍य है। मेरा कोई कुछ नहीं बिगाङ सकता है।’

राजा का नाम सुनते वह उनके चरणों में गिर पङी बोली, ‘हे महाराज! तुम अभी यहां से चले जाओं नहीं तो यती आएगा और हम दोनों को शाप देकर भस्‍म कर देगा।’

राजा ने पूछा, ‘तुम कौन हो और इस यती के हाथ कैसे पङी?’

वह बोली, ‘मेरे पिता कामदेव और मां पुष्‍पावती हैं। जब मैं बारह बरस की हुई तो मेरे मां-बाप ने मुझे एक काम करने को कहा। मैंने उसे नहीं किया। इसपर उन्‍होंने गुस्‍सा होकर मुझे इस यती को दे डाला। वह मुझे यहां ले आया। और बंदरिया बनाकर रखा है। सच है, भाग्‍य के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता।’

राजा ने कहा, ‘मैं तुम्‍हें साथ ले चलूंगा।’ इतना कहकर उसने दूसरे कुएं का, पानी छिङककर उसे फिर बंदरिया बना दिया।

अगले दिन वह यती आया। जब उसने बंदरिया को स्‍त्री बना लिया तो वह बोली, ‘मुझे कुछ प्रसाद दो।’

यती ने क कमल का फूल दिया और कहा, ‘यह कभी कुम्‍हलाएगा नहीं और रोज एक लाल रत्‍न देगा। इसे संभालकर रखना।’

यतीके जाने पर राजा ने बंदरिया को स्‍त्री बना लिया। फिर अपने वीर बेतालों को बुलाया। वे आए और तख्‍त पर बैठाकर उन दोनों को ले चले। रास्‍ते में यती का दिया लाल रत्‍न उगलने वाला फूल राजा ने एक सुंदर खेलते हुए बालक को दे दिया। बालक फूल लेकर घर चला गया।

राजा स्‍त्री को साथ लेकर अपने महल में आ गए।

अगले दिन कमल में एक लाल रत्‍न निकला। इस तरह हर दिन निकलते-निकलते बहुत से लाल रत्‍न इकट्टे हो गए। एक दिन उस बालक का पिता उन्‍हें बाजार में बेचने गया। कोतवाल ने उसे पकङ लिया। राजा के पास ले गया।

लङके के बाप ने राजा को सब हाल ठीक-ठीक कह सुनाया और बताया कि उसे नहीं पता यह फूल बालक के पास कहां से आया लेकिन हर दिन इसमें से रत्‍न निकलता है। सुनकर राजा को सब याद आ गया। कोतवाल को उन्‍होंने हुक्‍म दिया कि वह उसे बेकसूर आदमी को एक लाख रूपया दें।

इतना कहकर पुतली पुष्‍पवती बोली, ‘हे राजन्! जो विक्रमादित्‍य जैसा दानी और न्‍यायी हो, वही इस सिंहासन पर बैठ सकता है।’


राजा झुंझलाकर चुप रह गया। अगले दिन वह सिंहासन की तरफ बढा तो मधुमालती नाम की नौवीं पुतली ने उसका रास्‍ता रोक लिया। 
आठवीं पुतली पुष्‍पवती की कहानी भााग - 09 आठवीं पुतली पुष्‍पवती की कहानी  भााग - 09 Reviewed by Kahaniduniya.com on अक्तूबर 29, 2019 Rating: 5

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