सेठ ने कम दान देकर भी पाया सेवा का आनंद
जमशेदजी मेहता कराची के प्रसिद्ध सेठ व समाजसेवी थे।
अपार धन के साथ उन्होंने उदार ह्रदय भी पाया था। असहायों के लिए मुक्त हस्त से
व्यय करना उनकी प्रकृति में था। दूर-दूर से लोग अपनी समस्या लेकर उनके पास आते
और जमशेदजी चुटकियों में उन्हें हल कर देते। एक बार कराची जनचिकित्सालय के सदस्यगण
चंदा लेन के लिए मेहताजी के पास गए। मेहताजीने उनका यथोचित सत्कार किया और पूछा
कि चंदे में कितनी राशि दी जाए। सदस्यों ने मेहताजी ने मेहताजी को बताया कि इस
बार प्रबंध समिति ने निर्णय लिया है कि दस हजार रूपए देने वाले दानदाता का नाम अस्पताल
के मुख्य द्वार पर लगाने वाले शिलालेख पर अंकित किया जाएगा। मेहताजी अंदर गए और
अपनी तिजोरी से रूपए गिनकर मांगने आए सदस्यों के समक्ष रख दिए और अत्यंत
विनम्रता से उन्हें गिन लेने का आग्रह किया। सदस्यों ने रूपए गिने तो पाया कि वे
दस हजार से पचास रूपए कम हैं।
उन्होंने तत्काल मेहताजी से कहा-पचास रूपए देने पर
दस हजार रूपए पूरे हो जाएंगे। तब मेहताजी बोले-मेरे लिएइतना ही दान उत्तम है। मैं
दस हजार रूपए देकर अपना नाम प्रचाहित नहीं करवाना चाहता। विज्ञापन से दान का महत्व
नष्ट हो जाता है। महत्व चिकित्सालय के उदेश्य का रहना चाहिए, न कि दानदाता के
नाम का। यदि दान प्रचारित किया जाए तो निर्धन व्यक्ति को त्याग व सेवा करने की
प्रेरणा केसे मिलेगी? सेवा से मिलने वाला आनंद पत्थर पर नाम अंकित करवाने से नहीं
मिलेगा।
वस्तुत: परोपकार
में प्रतिफल की कल्पना नहीं होनी चाहिए क्योंकि वह निस्वार्थ सेवा की दिव्य
सुखानुभूति को समाप्त कर देती है।
उत्तम विचार – चापलूसीएक नकली सिक्का है। इसे चलाने का
प्रयत्न करने वाला कष्ट में पङ सकता है।
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