सात मेमने और मक्कार भेड़िया

हिमालय की पर्वत की तराई की पहाड़ियों में एक गांव बसा था। यह बहुत पहले की बात है। गांव की बाहरी सीमा में, जहां से जंगल आरंभ होता था, एक कुटिया बनी हुई थी। उसमें कोई व्यक्ति नहीं रहता था। एक बकरी ने उसी कुटिया को अपना घर बना रखा था। उसके साथ सात मेमने भी रहते थे। बकरी बेचारी विधवा थी। उसके पति बकरे को एक मक्कार भेड़िया खा गया था। वह भेड़िया पास में ही एक मांद में रहता था।
कल का दिन अच्छा नहीं रहा था। सारा दिन पानी बरसता रहा। रात को भी वर्षा बंद नहीं हुई। बकरी चरने के लिए बाहर न जा सकी थी। न ही वह बच्चों के लिए कुछ ला पाई थी। बस, सब कुटिया में दुबके पड़े रहे।

लेकिन आज की सुबह सुहावनी थी। वर्षा थम गयी थी। बकरी जागी, उसने अलसाहट भगाने के लिए जोर की अंगड़ाई ली और उठ खड़ी हुई। लेकिन सुस्ती पूरी तरह गई नहीं। बदन अकड़ा था और आंखें मिचमिची सी। उसने खिड़की से बाहर देखा। आसमान पर नजर डाली। आकाश साफ देखकर उसे बड़ी खुशी हुई। बादलों का कहीं नामो-निशान भी न था। चैन की सांस लेकर उसने अपने मेमनों की ओर देखा और बोली-‘‘बच्चों, मैंने अभी बाहर झांककर आसमान देखा। मौसम साफ है। मैं बाहर घास चरने जा रही हूं और तुम्हारे लिए भी खाना ले आऊंगी। यह तो थी अच्छी खबर। अब एक बुरी खबर भी है। वह मक्कार भेड़िया, जिसने पिछले महीने तुम्हारे पापा को खा लिया था, यहीं आस-पास कहीं घात लगाता घूम रहा है। इसलिए सावधान रहना। जब तक मैं लौट न आऊं, तब तक घर का दरवाजा न खोलना।’’
इस प्रकार मेमनों को चेतावनी देकर बकरी द्वार खोलकर बाहर निकली और जाने से पहले उसने मेमनों को द्वार बंद कर अंदर से चिटकनी लगाने का आदेश दिया। फिर वह चली गई। 

भेड़िया पास ही झाड़ी में छिपा बैठा इसी इंतजार में था कि बकरी वहां से टले तो कुछ तिकड़म लगाए। बकरी के आंखों से ओझल होने तक वह उसे देखता रहा। फिर वह खड़ा हुआ और दबे पांव कुटिया की ओर बढ़ने लगा। वहां पहुंचने पर उसने दरवाजे पर दस्तक दी।
‘‘कौन है भई ?’’ एक मेमने ने भीतर से पूछा।
‘‘मैं तुम्हारी मां हूं बच्चों।’’ भेड़िए ने अपनी मोटी आवाज को पतली करने की कोशिश करते हुए कहा-‘द्वार खोलो। तुम्हारे लिए खाना लेकर आई हूं।’’
‘‘हमें मूर्ख बनाने की कोशिश मत करो। तुम हमारी मां नहीं हो सकतीं।’’ सभी मेमनों ने एक स्वर में कहा-‘‘हमारी मां की आवाज तो कोमल और सुरीली है। तुम्हारे जैसी मोटी नहीं।’’
भेड़िया निराश होकर लौटा।
काफी सोचने के बाद उसने एक चाल चली। उसने काफी सारा चॉक ढूंढ़ लिया और उसे खा गया। चॉक खाने से उसकी आवाज पतली और मीठी हो गई।

फिर उसने अपना संवाद तैयार करके अभ्यास किया-‘‘बच्चो, दरवाजा खोलो। मैं तुम्हारी मां हूं।’’
पूरी तरह संतुष्ट होने पर भेड़िया दोबारा कुटिया के पास पहुंचा व दरवाजा खटखटाया-‘‘बच्चो ! दरवाजा खोलो। मैं तुम्हारी मां हूं।’’ उसने अपनी आवाज यशासंभव और मीठी बनाते हुए कहा।
परंतु मेमने भी चतुर थे। इतनी आसानी से झांसे में आने वाले नहीं थे। उन्होंने दरवाजे की झिरी से बाहर झांका और भेड़िए के काले पैर देख लिए।

‘नहीं, नहीं, तुम हमारी मां नहीं हो सकतीं। तुमने किसी तरह आवाज तो पतली कर ली है, पर तुम्हारे पैर काले हैं। हमारी माँ के पैर तो दूध से सफेद हैं। धोखेबाज, हमारे घर से दूर रह। हमें पता है, तू वही मक्कार भेड़िया है जो हमारे पापा को खा गया था। तूने ही हमारी मां को विधवा बना दिया और हमें अनाथ। अपना मुंह काला कर यहां से।’’
मक्कार भेड़िए को फिर वहां से असफल होकर लौटना पड़ा। वह सोचने लगा-‘अब क्या किया जाए ?’ छोटे मेमने का मलाई जैसा कोमल मांस भेड़िए को बहुत भाता था। उसने मन में ठान ली थी कि उन मेमनों को किसी तरह हड़पना है। कुटिया में सात मेमने थे। पूरी दावत का सामान। कई दिन और कुछ की जरूरत ही न पड़ती। भेड़िया लार टपकाता हुआ तरकीबें सोचने लगा।
अचानक उसे एक बढ़िया आइडिया सूझा। वह खुशी के मारे झूम उठा। अपनी नई तरकीब को क्रियान्वित करने के लिए वह एक पेंटर के स्टूडियो में पहुंचा। उसने स्टूडियो का दरवाजा खटखटाया और द्वार खुलने की प्रतीक्षा करने लगा।
सात मेमने और मक्कार भेड़िया सात मेमने और मक्कार भेड़िया Reviewed by Kahaniduniya.com on मार्च 06, 2019 Rating: 5

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